24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्री शीतला माता स्नानोत्सव आज

हावड़ा के सलकिया में दिखेगी आस्था की पराकाष्ठा, बड़ी मां के मंदिर पहुंचेंगे लाखों श्रद्धालु, पुलिस प्रशासन सतर्क हावड़ा : प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन उत्तर हावड़ा के सलकिया अंचल में श्री श्री शीतला माता का स्नानोत्सव परंपरागत श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाने की तैयारियां की गयी हैं. […]

हावड़ा के सलकिया में दिखेगी आस्था की पराकाष्ठा, बड़ी मां के मंदिर पहुंचेंगे लाखों श्रद्धालु, पुलिस प्रशासन सतर्क

हावड़ा : प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन उत्तर हावड़ा के सलकिया अंचल में श्री श्री शीतला माता का स्नानोत्सव परंपरागत श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाने की तैयारियां की गयी हैं. इस वर्ष 3 फरवरी 2015 को यह उत्सव मनाया जा रहा है. इस उत्सव के प्रमुख केंद्र हावड़ा के सलकिया के 33/1, श्री अरविंद रोड स्थित बड़ी शीतला माता मंदिर को रंग-रोगन कर नया रूप देने के साथ ही आलोक सज्जित भी किया गया है. जैसा कि सर्वविदित है कि इस उत्सव के कारण इस दिन लगभग पूरे उत्तर हावड़ा में यातायात प्रभावित रहता है.

स्नान शोभायात्र के दौरान माईक बजाने के प्रति जिला पुलिस प्रशासन ने दिशा निर्देश जारी किये हैं. प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून का उल्लंघन करनेवालांे के खिलाफ सख्ती से निपटा जायेगा. उल्लेखनीय है कि इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण दोपहर बाद शुरू होनेवाली शोभायात्र होती है, जिसमें बैंड-बाजे और समसामयिक व सामाजिक विषयों पर रंग-बिरंगी झांकियां शामिल होती हैं और इस शोभायात्र के मध्य ही श्री शीतला माताओं को सुसिज्जत पालकियों में बैठा कर बांधाघाट गंगातट पर स्नान करवाने के लिये श्रद्धालु आतुर दिखते हैं. बड़ी मां के मंदिर सूत्रों के मुताबिक 1539 से इस उत्सव के मनाये जाने के प्रमाण हैं.

अगर इसे ही सही माना जाये तो भी यह उत्सव 476 साल पुराना है. जिसका स्वरु प समय के साथ-साथ तेजी से बदला है और आज तो यह इतने विराट रूप में अनुष्ठित हो रहा है कि इसे शब्दों में बयां करना असंभव है. यह उत्सव क्यों मनाया जाता है? इसका उत्तर तो अतीत के गर्भ में छिपा है लेकिन लोगों का मानना है कि माघी पूर्णिमा के बाद होनेवाले ऋतु परिवर्तन में मां शीतला लोगों को चेचक जैसे रोगों से बचाये रखें इसकी सामूहिक कामना के लिये यह पर्व मनाया जाता है. वैसे वर्तमान में इस दिन को मनोकामना पूर्ति के दृष्टिकोण से भी देखा जाता है.

जहां कुछ श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति हेतु इस दिन उपवास रखते हैं वहीं कुछ श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर भी उपवास करते हैं .बहुत से श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो वर्षों से इस दिन उपवास रखते आ रहे हैं. हालांकि श्री शीतला माताएं सर्वत्र पूजित हैं लेकिन जितनी आस्था सलकिया अंचल में देखने को मिलती है, शायद कहीं नहीं और इसी वजह से उत्तर हावड़ा में शीतला माताओं के प्रमुख सात मंदिरों की संख्या अब लगभग 100 हो गयी है. उत्सव के दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु पहले दिन गंगा स्नान कर बड़ी शीतला मां के मंदिर में व्रत का संकल्प लेते हैं और व्रत पूर्णाहुति तक शुद्धता व सात्विकता का अवलम्बन करते हैं.

उत्सव के दिन तड़के से ही व्रती श्रद्धालु गंगा में स्नान के बाद बांधाघाट गंगातट से बड़ी मां के मंदिर तक दंडी (षाष्टांग) प्रणाम करते हुए जाते व आते हैं. दोपहर बाद निकलने वाली शोभायात्र के मध्य ही विभिन्न इलाकों में स्थित शीतला मंदिरों से पालकियों में विराजमान कर शीतला माताओं को भक्तगण बांधाघाट गंगातट पर लाते हैं और गंगा में स्नान करवा कर पुन: मंदिर में ले जाते हैं. समापन बड़ी मां के स्नान के साथ होता है जो पूर्णिमा के समय काल पर निर्भर रहता है. बड़ी मां की पालकी के साथ हजारों भक्तों का काफिला रहता है, साथ ही बड़ी मां के मंदिर और बांधाघाट गंगातट के मध्य सड़क के दोनों किनारों पर लाखाधिक भक्त हाथों में कलशी में गंगाजल लिये खड़े रहते हैं, ज्योंहि बड़ी मां की पालकी गंगा स्नान कर मंदिर की ओर लौटती है दोनों और से भक्त कलशी का गंगाजल मां को समर्पित करने लग जाते हैं.

मां को स्नान कराने के पश्चात व्रती श्रद्धालु महिलाएं परम्परागत रूप से ‘सिंदूर खेला’ (एक दूजे को सिंदूर लगा कर) के माध्यम से एक दूसरे के सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. स्नान यात्र के पश्चात मंदिर पहुंचने के बाद बड़ी मां का विधिवत श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद मां का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है. मंदिर खुलते ही व्रती श्रद्धालु ‘सौलह आना पूजो’ अर्थात पूर्ण पूजा करके उपवास खोलते हैं. इस पूजा के लिए भी इतनी भारी भीड़ उमड़ती है कि लोगों को घंटों कतारवद्ध होकर खड़ा रहना पड़ता है और इस दिन भी श्री अरविंद रोड से बांधाघाट तक यातायात अवरूद्ध रहता है.

इस स्नानोत्सव के उपलक्ष्य में ही एक सप्तदिवसीय सांस्कृतिक आयोजन भी मंदिर प्रागंण में अनुष्ठित होता है. उत्सव में न केवल स्थानीय बल्कि पूरे राज्य से लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है. हाल के वर्षों में आसपास के राज्यों से भी काफी लोग आने लगे हैं. इस उत्सव में उत्तर हावड़ा के हर गली-मुहल्ले में जन-सैलाब उमड़ पड़ता है. उत्सव के दौरान विधि-व्यवस्था बनाये रखने के लिए हावड़ा जिले का पूरा पुलिस-प्रशासन व अनेक स्वयंसेवी संगठन काफी तत्पर रहते हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह उत्सव आस्था की पराकाष्ठा को दर्शाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें