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अध्यात्म का प्रथम चरण

जहां कहीं भी आंतरिक उत्कृष्टता होगी, वहां बाह्य सामथ्र्य एवं समृद्धि की कमी रह ही नहीं सकती. ये विशेषताएं हमें समस्त विश्व का मार्गदर्शन करने एवं विविध अनुदान दे सकने योग्य बनाये रह सकती हैं. मनुष्यों ने अध्यात्म का प्रथम पाठ पढ़ा है और आज वे सांसारिक उन्नति की दिशा में बहुत आगे बढ़ गये […]

जहां कहीं भी आंतरिक उत्कृष्टता होगी, वहां बाह्य सामथ्र्य एवं समृद्धि की कमी रह ही नहीं सकती. ये विशेषताएं हमें समस्त विश्व का मार्गदर्शन करने एवं विविध अनुदान दे सकने योग्य बनाये रह सकती हैं. मनुष्यों ने अध्यात्म का प्रथम पाठ पढ़ा है और आज वे सांसारिक उन्नति की दिशा में बहुत आगे बढ़ गये हैं.
साहस, पुरुषार्थ, श्रम, स्वावलंबन, नियमितता, तन्मयता, व्यवस्था, सहयोग, स्वच्छता जैसे गुण अध्यात्म के प्रथम चरण में आते हैं. इन्हें यम-नियम की परिभाषा अथवा धर्म के दस लक्षणों में गिना जा सकता है. इन्हीं गुणों ने उन्हें शारीरिक, बौद्धिक, संगठनात्मक व वैज्ञानिक उपलब्धियों से भरपूर कर दिया. जो देश कुछ समय पहले तक गयी-गुजरी स्थिति में थे, उन्होंने अध्यात्म का प्रथम चरण अपनाया और आश्चर्यजनक भौतिक उन्नति में सफल हुए.
यदि वे दूसरे चरण में उत्कृष्टता व आदर्शवादिता की भूमिका में प्रवेश कर सके होते, आस्तिकता व आत्मवादी तत्वज्ञान अपना सके होते, अध्यात्मवाद का अगला चरण बढ़ा सके होते, तो उनकी वही महानता विकसित होती, जो भारत भूमि के निवासी महामानवों में प्रस्फुटित होती रही है. हम ईश्वर के सत-चित-आनंद स्वरूप अविनाशी अंग हैं. अत: अपनी महानता को अक्षुण्ण बनाये रखें. मानव जीवन महान प्रयोजन के लिए चिरकाल उपरांत मिला है, उसका उपयोग उच्च प्रयोजनों के लिए करें. अपने पाशविक कुसंस्कारों को हटाने के लिए संघर्ष साधना, संयम एवं तपश्चर्या का अभ्यास करें.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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