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बैसाखी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं : देश की एकता व अखंडता का प्रतीक है बैसाखी

आज बैसाखी का पावन दिन है. यह महज धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी तिथि को खालसा पंथ की स्थापना की थी, ताकि सामाजिक भेदभाव खत्म हो और एक मजबूत राष्ट्र की परिकल्पना साकार हो. अलग-अलग राज्यों में इस पर्व के विविध रूप […]

आज बैसाखी का पावन दिन है. यह महज धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी तिथि को खालसा पंथ की स्थापना की थी, ताकि सामाजिक भेदभाव खत्म हो और एक मजबूत राष्ट्र की परिकल्पना साकार हो. अलग-अलग राज्यों में इस पर्व के विविध रूप भारतीय संस्कृति को समृद्धि प्रदान करते हैं.
बैसाखी : खालसा सजृन दिवस
जसबीर सिंह
जेनरल मैनेजर, एसबीआइ, सेवानिवृत), रांची
यूं तो भारतवर्ष में बैसाखी को नये साल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. फसलें कटती हैं और किसान अपनी कठिन मेहनत के बाद हर्षोल्लास के साथ कुछ विश्राम पा लेता है.
इन दिनों प्रकृति भी अपनी भरपूर सुंदरता बिखेरती है, परंतु सिखों के लिए बैसाखी खालसा सृजन दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा का सृजना किया था. इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी, इसको जानने के लिए उस वक्त की पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक होगा.
औरंगजेब का शासनकाल था और समाज चार वर्णों में विभाजित था. शूद्र एवं दलितों की दशा अत्यंत ही दयनीय थी. उन्हें समाज के उच्च वर्गों से आये दिन भीषण यातनाएं झेलनी पड़ती थीं. गुरु गोबिंद सिंह जी ने देखा कि ऊंच-नीच, बड़े-छोटे और विभिन्न धार्मिक वर्गों में बंटा समाज बुरी तरह से खंडित हो चुका है. इसका भरपूर लाभ मुगल उठा रहे थे.
छोटे वर्ग के लोग बड़ों द्वारा कुचले जा रहे थे. तब उन्होंने दृढ़ संकल्प लिया कि समाज की बिखरी शक्तियों को समेटना होगा, समाज में जनशक्ति का संचार करना होगा, उनके स्वाभिमान को जगाना होगा. उनमें अदम्य उत्साह भरकर शेर की शक्ति लानी होगी, ताकि वे सदैव शक्ति-पुंज बनकर तुर्कों के अत्याचारों से जूझ सकें और उन्हें परास्त कर सकें. इसी संदर्भ में उन्होंने उद्घोष किया :
मानस की जात सभै एकै पहिचानबो
उन्होंने बैसाखीवाले दिन देशभर में फैले लोगों का एक विशाल जन सम्मेलन आनंदपुर साहिब में बुलाया. उसमें एक कड़ी परीक्षा द्वारा पांच व्यक्तियों का चयन किया गया. इन पांच व्यक्तियों में एक खत्री, एक जाट, एक धोबी, एक कहार और एक नाई था. यह मात्र संयोग था कि इनमें एक पंजाब, एक उत्तर प्रदेश, एक गुजरात, एक ओड़िशा और एक कर्नाटक का था.
विखंडित भारत को संगठित करने का यह प्रथम प्रयास था. गुरुजी ने इन्हें अमृत-पान कराकर ‘पांच प्यारे’ कहा और इनके नाम के साथ ‘सिंह’ जोड़ दिया. तत्पश्चात स्वयं भी उनके हाथों से अमृत-पान किया और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह हो गये. सभी को बराबरी का दर्जा प्रदान करते हुए उन्होंने विनम्रता का उच्च कोटि का उदाहरण पेश किया. इसलिए भाई गुरदास जी ने कहा :
वाह-वाह गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला
इस अमृत-पान से लोगों की मानसिकता बदल गयी. स्वयं को दीन-हीन समझनेवाले, जाति-कर्म से अभिशप्त लोगों में अद्भुत क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और सभी, जो सदियों से हीन भावना से ग्रसित एवं शोषित थे, अब शेर बनकर जीवन-क्षेत्र में आत्मविश्वास से परिपूर्ण सिर उठाकर सिंह-गर्जना कर रहे थे.
इसी संदर्भ में संगत एवं पंगत की प्रथा भी जीवन का हिस्सा बन गयी, जिसका भाव है- सभी लोग मिल-जुल कर प्रभु का गुणगान करते हैं तथा ऊंच-नीच की बेड़ियों को तोड़ते हुए एक साथ पंगत (पंक्ति) में बैठकर लंगर (भोजन) ग्रहण करते हैं, जो समानता एवं एकता की भावना को परिपोषित तथा सुदृढ़ करता है.
अफसोस है कि तीन सदी बाद भी हम वर्ण-विभाजन के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पाये हैं. अपने नाम के बाद उपनाम भी लिखते हैं, जो जाति को इंगित करता है. हमें समझना होगा कि इससे समाज और देश की जड़ें कमजोर होती हैं. इससे हम एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने से पीछे रह जायेंगे.
राज करेगा खालसा
प्रो. लाल मोहर उपाध्याय
अध्यक्ष-गुरुबाणी प्रचार सेवा केंद्र, पटना साहेब, पटना
स्वामी विवेकानंद ने असिव्रतधारी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का स्मरण भारत माता के सर्वश्रेष्ठ सपूत के रूप में करते हुए कहा है कि उन्होंने भारत माता की बलिबेदी पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. खालसा पंथ साजना के पीछे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का स्पष्ट विचार था कि इस विशाल जन समाज को राष्ट्रीय सूत्र में तब तक नहीं बांधा जा सकता, जब तक कि राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को ही उनका धर्म न बना दिया जाये.
सकल जगत में खालसा पंथ गाजै, जगे धर्म हिन्दू सकल भंड भाजै।
उनका उद्घोष था, जिसकी पृष्ठभूमि में ‘राज करेगा खालसा’ तथा ‘मानस की जात सबै एकै पहिचानबो’ का मूलमंत्र था.
खालसा पंथ साजना दिवस अर्थात 1699 को बैसाखी के दिन देश की एकता, अखंडता एवं धर्म निरपेक्षता के लिए पंच प्यारों को अमृत पिलाकर जीवित करने का कार्य श्री गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने किया था.
ये पंच प्यारे थे. भाई दया राम (खत्री-लाहौर) का नाम हो गया भाई दया सिंह, भाई धर्मचंद (जाट-दिल्ली) का नाम हो गया भाई धर्म सिंह, भाई मुहकम चंद (धोबी-द्वारका) का नाम हो गया भाई मुहकम सिंह, भाई हिम्मत राम (कहार-जगन्नाथपुरी) का नाम हो गया भाई हिम्मत सिंह तथा भाई साहब चंद (नाई-बिदर) का नाम हो गया भाई साहिब सिंह.
पुन: इन पंच प्यारों से अमृत छक कर गुरु गोबिंद राय जी गुरु गोबिंद सिंह बने. संगत ने जयकारा लगाया- ‘बोले सो निहाल सति श्री अकाल’. श्री गुरु गोबिंद सिंह ने जयकारा का नारा दिया- ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ (खालसा वाहिगुरु अर्थात परमात्मा से है तथा जीत परमात्मा की है). विश्व इतिहास में यह पहला मौका था, जब एक गुरु ने अपने शिष्यों से दीक्षा ली. इसलिए तो कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह आपे गुरु-चेला के प्रतीक हैं.
एक शांतिपूर्ण धार्मिक संप्रदाय से एक सुसंगठित योद्धा शक्ति में सिखों के परिवर्तित होने पर दृष्टिपात करते हुए डॉ गोगुल चंद नारंग ने लिखा है कि कोई संदेह नहीं कि सिखों की राजनीतिक आकांक्षाओं ने दसवें गुरु के नेतृत्व में ही अधिक स्पष्ट रूप धारण किया, तथापि यदि सिखों के इतिहास को ध्यानपूर्वक पढ़ा जाये, तो स्पष्ट पता लगता है कि सिखों का धार्मिक संप्रदाय में, राजनीतिक संप्रदाय में परिवर्तित होना गुरु गोबिंद सिंह के समय से बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था.
वास्तव में श्री गुरु गोबिंद सिंह के जीवनकाल में जो फसल पक कर तैयार हुई, उसका बीज वपन गुरु नानक देव जी ने ही कर दिया था, जिसे उनके उत्तराधिकारियों ने भी सींचा था. नि:संदेह खालसा को गौरव के शिखर तक पहुंचानेवाली कृपाण तो गुरु गोबिंद सिंह की थी, परंतु इसके लिए इस्पात श्री गुरु नानक देव ने ही तैयार किया था. श्री गुरु नानक देव ने हिंदुओं के कच्चे लोहे को पिघलाकर तथा उस धातु से जनसमूह की उदासीनता, अंधविश्वास तथा कपट दंभ रूपी मैल को जलाकर इस्पात तैयार किया था.
(ट्रांसफॉरमेशन ऑफ सिख्जिम पृष्ठ 65)
सिख इतिहास के मनीषी डॉ हरवंश सिंह के शब्दों में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा प्रस्तुत खालसा पंथ 230 वर्षों से चली आ रही आध्यात्मिक कार्यविधि की चरमसीमा था.
नयी व्यवस्था ‘खालसा’ में सम्मिलित होने का निमंत्रण देते हुए उन्होंने अन्याय से जूझने का संदेश दिया. इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह ने भारतवासियों के शिथिल एवं क्लांत शरीर को बदल कर रख दिया और इसमें नवजीवन का संचार कर दिया.
(गुरु गोबिंद सिंह पृ. 66, 67)
इससे विश्व की एकता तथा अखंडता सुदृढ़ होती है. इस कौमी नारा ‘राज करेगा खालसा’ की यही उपयुक्तता है.
वाहि गुरु जी का खालसा ।
वाहि गुरु जी की फतेह ।।

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