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व्यक्तिगत कर्ज को लेकर आरबीआइ की चिंता

गवर्नर शशिकांत ने वर्तमान स्थिति से भविष्य के दुष्परिणामों में अमेरिका की 2006 की कर्ज संकट से उपजी मंदी जैसी दशा का आकलन कर लिया है, और इसलिए उन्होंने बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों को अपनी आंतरिक वित्तीय व्यवस्था को लेकर चौकन्ना रहने के लिए आगाह किया है.

रिजर्व बैंक गवर्नर शशिकांत दास का एक ताजा वक्तव्य इन दिनों बहुत चर्चा में है, जिसमें उन्होंने बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों को व्यक्तिगत ऋणों में अत्यधिक तेजी पर चौकन्ना रहने के लिए सचेत किया है. इस कथन के आधार पर ये सुगबुगाहट फैली है कि आखिर आरबीआइ की चिंता का कारण क्या है. आरबीआइ गवर्नर ने इन दिनों क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल में आयी एकाएक तेजी पर भी ध्यान आकर्षित किया है. जुलाई तथा अगस्त तक क्रेडिट कार्ड के भुगतानों में 30 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर्ज हुई है. आरबीआइ की एक अन्य रिपोर्ट के आंकड़े और भी ज्यादा अचंभित करते हैं, जिनसे पता चलता है कि बीते दो दशकों की तुलना में इस साल अब तक व्यक्तिगत ऋणों में सबसे अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गयी है, तथा ये राशि कृषि, उद्योग तथा सेवा क्षेत्र के ऋणों से भी बहुत ज्यादा है.

ये दुखद है कि कृषि क्षेत्र पर बैंकिंग ऋणों में पिछले तीन दशकों से कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं हुई है. वहीं औद्योगिक ऋण में मात्र पहले दशक में तेजी दर्ज हुई थी और उसके बाद लगातार गिरावट हुई है. हालांकि सेवा क्षेत्र में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है, और इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है. व्यक्तिगत ऋणों में हो रही बढ़ोतरी से ये बात स्पष्ट होती जा रही है कि इन दिनों आम आदमी भले ही उधार नहीं खरीद रहा, परंतु वो अपनी खरीदारी बैंकिंग ऋण या क्रेडिट कार्ड से कर रहा है. इस चर्चा को कई दफा विलासिता के जीवन के प्रति आकर्षण या पश्चिमी देशों के तौर तरीकों को अपनाने के प्रति अंधी दौड़ से जोड़कर ही खत्म कर दिया जाता है, जबकि स्थिति ठीक विपरीत है. आर्थिक विश्लेषणों से पता चलता है कि भारतीयों की आय की तुलना में उनके खर्च लगातार बढ़ रहे हैं.

आरबीआइ की वर्ष 2023 की सीसीएस रिपोर्ट ये भी बताती है कि 50 प्रतिशत लोग मानते हैं कि उनकी आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. वहीं 27 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उनकी आय पिछले वर्ष की तुलना में घट गयी है. इससे स्पष्ट है कि तकरीबन 80 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनकी आय उनके खर्चों में हो रही बढ़ोतरी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है. आरबीआइ की सीसीएस रिपोर्ट में यह भी इंगित किया गया है कि तकरीबन 75 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उनके खर्च पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बढ़ गए हैं. तकरीबन 20 प्रतिशत लोगों ने माना है कि उनके खर्च पिछले वर्ष के समान हैं, और मात्र 5 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उनके खर्च कम हुए हैं. आरबीआई के सर्वे में 85 प्रतिशत लोगों ने ये भी कहा है कि वर्ष 2023 में घरेलू व दैनिक आवश्यकताओं पर उनके खर्चे बढ़े हैं.

पिछले कुछ समय से महंगाई के आंकड़ों में उतार-चढ़ाव के बावजूद वे लगभग ऊंचे ही रहे हैं, चाहे उसके पीछे घरेलू कारण हों या वैश्विक. यानी कहा जा सकता है कि एक तरफ महंगाई बढ़ रही है, और दूसरी तरफ आम लोगों के खर्चों का प्रतिशत भी तुलनात्मक रूप से बढ़ रहा है. उधर व्यक्ति की आय या तो समान है या घटी है, तो यकीनन खर्चों की पूर्ति का वित्तीय स्रोत बैंक ऋण या क्रेडिट कार्ड हैं. इसके अलावा लगातार बढ़ रही महंगाई तथा कम हो रही आय ने निश्चित रूप से खरीदारी की क्षमता को घटाया है, जो देश की आर्थिक स्थिति के लिए फायदेमंद नहीं है. इस परिस्थिति के चलते ही चालू वित्तीय वर्ष में अगस्त के महीने तक बैंकों तथा एनबीएफसी के क्रेडिट कार्ड ऋण 30 प्रतिशत, वाहन कर्ज 20 प्रतिशत तथा व्यक्तिगत ऋण 23 प्रतिशत बढ़ गए हैं. इसके अलावा एक अन्य पक्ष जो बहुत अधिक अचंभित करता है कि असुरक्षित ऋणों का प्रतिशत पिछले दो वर्षों में बैंकिंग तथा एनबीएफसी सेक्टर में बढ़ा है. आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2023 तक भारतीय बैंकिंग सेक्टर में असुरक्षित ऋणों की मात्रा 12 लाख करोड़ रुपये थी.

आज भारत के विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद इस बात की ज्यादा जरूरत आन पड़ी है कि जीडीपी बढ़ने के साथ सभी भारतीयों की आय भी बढ़नी चाहिए. प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी भारत दुनिया के 125वें स्थान पर है. हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि किसी कंपनी के मुनाफे में होने वाली वृद्धि का बहुत बड़ा हिस्सा उसके मालिकों की जेब में जाता है, बाकी बचा अंशधारकों के पास, तथा एक न्यूनतम हिस्सा ही काम करने वाले श्रमिकों को मिल पाता है. इसी कारण भारत जैसे मुल्क में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है. अब भारत जनसंख्या में चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे बड़ी आबादी वाला मुल्क भी बन गया है, पर लगातार बढ़ती बेरोजगारी तथा महंगाई की दर ने समाज के तकरीबन 80 प्रतिशत तबके को आर्थिक रूप से परेशानियों में डाल रखा है. शायद गवर्नर शशिकांत ने इस वर्तमान स्थिति से भविष्य के दुष्परिणामों में अमेरिका की 2006 की कर्ज संकट से उपजी मंदी जैसी दशा का आकलन कर लिया है, और इसलिए उन्होंने बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों को अपनी आंतरिक वित्तीय व्यवस्था को लेकर चौकन्ना रहने के लिए आगाह किया है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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