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सुलगता सहारनपुर

पिछले बीस दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में चौथी बार हिंसा भड़की है. घटनाक्रम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन स्थिति को संभालने में नाकाम रहे हैं. कई रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि पुलिस ने हिंसक संघर्ष को रोकने के बजाये एक […]

पिछले बीस दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में चौथी बार हिंसा भड़की है. घटनाक्रम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन स्थिति को संभालने में नाकाम रहे हैं. कई रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि पुलिस ने हिंसक संघर्ष को रोकने के बजाये एक पक्ष का खुला समर्थन किया है. कानून-व्यवस्था बेहतर करने और सामाजिक शांति स्थापित करने का वादा कर सत्ता में आयी योगी सरकार के लिए सहारनपुर एक बड़ी परीक्षा बन कर सामने आया है.

पुलिस और प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों का तबादला या निलंबन सही कदम है, पर अभी सबसे जरूरी काम शांति स्थापित करना है. इसके लिए दोनों पक्षों को समझाने-बुझाने और आपराधिक तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करने की जिम्मेवारी सरकार की है. सहारनपुर के निलंबित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दूबे को एक न्यायिक समिति ने 2013 में मुज्जफरनगर में हुए सांप्रदायिक हिंसा में नकारात्मक भूमिका के लिए दोषी माना था. ऐसे अधिकारियों को संवेदनशील क्षेत्रों में नहीं भेजा जाना चाहिए.

इसके साथ ही सरकार या सरकार चला रही पार्टी को ऐसा कोई संकेत नहीं देना चाहिए कि वह किसी खास समूह या समुदाय की पक्षधरता कर रही है. ऐसी घटनाओं के समय राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गर्म होना आम बात है, लेकिन सरकार और प्रशासन को सुरक्षा और शांति की अपनी जिम्मेवारी को सबसे पहले रखना चाहिए. अतिरिक्त पुलिस बल भेजने, इंटरनेट सेवा को रोकने तथा पीड़ितों को मुआवजा देने जैसे कदमों से उम्मीद बंधी है कि बहुत जल्दी हिंसा के इस सिलसिले को रोका जा सकेगा.

अमन-चैन की बहाली के बाद विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास की खाई को पाटना बड़ी प्राथमिकता होगी क्योंकि अगर सामाजिक ताना-बाना बिगड़ा रहेगा, तो हिंसा की पुनरावृत्ति की आशंका हमेशा बनी रहेगी. जातिगत और सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की आंच पर राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां तो सेंकी जा सकती हैं, पर इनसे समाज और देश का बहुत नुकसान होता है. सहारनपुर के घटनाक्रम के अलावा उत्तर प्रदेश में अन्य आपराधिक कृत्यों और हिंसक भीड़ द्वारा मार-पीट की वारदातें भी सामने आ रही हैं.

कुछ पर्यवेक्षक यह भी रेखांकित करते हैं कि राज्य की नौकरशाही में राजनीतिक आधार पर विभाजन है. यदि ऐसा है तो कानून-व्यवस्था को सुचारू रखना और अच्छा प्रशासन दे पाना बहुत मुश्किल काम हो सकता है. बहरहाल, देर से ही सही, पर योगी सरकार हरकत में आती दिख रही है और आशा है कि सहारनपुर में बहुत जल्दी अमन का माहौल बन सकेगा.

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