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मिटे बंधुआ मजदूरी का कलंक

भूपेंद्र यादव सांसद, भाजपा अक्सर समाचार आदि के माध्यम से दूसरे देशों में काम करने के लिए जानेवाले कामगारों के पासपोर्ट जब्त करके कंपनियों द्वारा बंधक के रूप में काम कराने या अवैध वीजा के तहत काम कराने की बातें सामने आती हैं. इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक विश्व में मानव तस्करी एवं बंधुआ […]

भूपेंद्र यादव
सांसद, भाजपा
अक्सर समाचार आदि के माध्यम से दूसरे देशों में काम करने के लिए जानेवाले कामगारों के पासपोर्ट जब्त करके कंपनियों द्वारा बंधक के रूप में काम कराने या अवैध वीजा के तहत काम कराने की बातें सामने आती हैं. इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक विश्व में मानव तस्करी एवं बंधुआ मजदूरी एक चुनौती बनी हुई है. लंबे समय की असमानता के कारण समाज के अत्यंत गरीब लोग इसके शिकार होते हैं. शारीरिक एवं मानसिक रूप से भय दिखा कर किसी भी व्यक्ति को उसके मानवीय गरिमा एवं मूल्यों से नीचे के स्तर का कार्य करवाया जाता है. लेकिन, इसका खतरनाक स्वरूप तब जाहिर होता है, जब इसके साथ वे सब समूह जुड़ जाते हैं, जो मानव तस्करी, महिलाओं को जबरदस्ती सेक्स वर्कर के रूप में धकेलनेवाले गिरोह, बाल-तस्करी एवं मानव अंगों की तस्करी करने जैसे अपराधों में लिप्त हैं. इन समस्याओं से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कानूनी एवं सामजिक रूप से समाधान खोजने की जरूरत है.
इस संबंध में हाल ही में कॉमनवेल्थ देशों के पार्लियामेंट्री एसोसिएशन ने लंदन में सेलेवरी एक्ट 2015 पर एक कार्यशाला का आयोजन किया. दो दिवसीय इस कार्यशाला में हिस्सा लेने का अवसर मुझे मिला. इस कार्यशाला में इस समस्या एवं इसके समाधान के विविध पहलुओं पर व्यापक चर्चा की गयी.
हाल में ही आये एक सर्वे के मुताबिक, दुनियाभर में 2 करोड़ 10 लाख लोगइस अमानवीय समस्या के शिकार हैं. इसमें ज्यादातर लोग मजबूरी में वैश्यावृत्ति, बाल-मजदूरी एवं ऐसी परिस्थितियों से घिरे हुए बेहतर जीवन जीने से महरूम हैं. इनमें बड़ी संख्या उन लोगों की है, जो घरेलू नौकर, कृषि, निर्माण क्षेत्र एवं मनोरंजन क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. दुनियाभर के प्रवासी श्रमिकों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है. प्रवासी श्रमिकों के लिहाज से सोचें, तो यह स्थिति बेहद भयावह नजर आती है.
भारतीय संदर्भ में देखें, तो हमारे देश में इस दिशा में प्रगतिशील कार्य हुए हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर दिया गया है और अनुच्छेद 23 में भी इस बात का अधिकार दिया गया है कि किसी व्यक्ति का कर्ज के आधार पर शोषण नहीं किया जा सकता है. बाल-मजदूरी को निषेध करने के लिए भी हमारे संविधान में व्यापक प्रावधान हैं. बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट 1976 के तहत बंधुआ मजदूरी को रोकने की दिशा में कदम उठाया गया है. भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने भी शारीरिक एवं मानसिक रूप से खतरनाक साबित होनेवाले कार्यों एवं प्रक्रियाओं को चिह्नित करके, इनमें कम उम्र के बच्चों को काम कराने को प्रतिबंधित कर रखा है.
इसी वर्ष भारतीय संसद ने बाल श्रम को रोकने और बच्चों के भविष्य को गर्त में जाने से बचाने के लिए पर्याप्त प्रावधान सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाया है. हमारे संविधान में अनुच्छेद 24 के अंतर्गत 14 वर्ष की आयु से कम के बच्चों को किसी कंपनी या किसी भी ऐसे कार्य में श्रम कराने की इजाजत नहीं है, जहां उसके लिए कोई खतरा हो. इन तमाम प्रयासों के बावजूद अभी बंधुआ मजदूरी की घटनाएं समाचार पत्रों एवं चैनलों के माध्यम से संज्ञान में आती रहती हैं.
वर्ष 2014 में भाजपानीत सरकार के गठन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भी इस दिशा में ठोस प्रयास किये हैं. प्रधानमंत्री मोदी के विगत तीन वर्षों के कार्यकाल में कार्यस्थलों पर महिलाओं के शारीरिक शोषण, बाल-मजदूरी एवं अनुसूचित जाति/ जनजाति पर अत्याचारों पर ना केवल विधेयक लाये गये हैं, बल्कि मौजूदा कानूनों को और ज्यादा मजबूत बनाया गया है.
सरकार प्राथमिकता के आधार पर जहां एक ओर गरीब कल्याण योजनाओं को प्राथमिकता दे रही है, वहीं दूसरी ओर कानूनों को भी इतना सक्षम बनाने का प्रयास कर रही है कि किसी भी व्यक्ति का शोषण ना हो. ऋण चुकाने के नाम पर बंधुआ मजदूरी की बातें अक्सर सामने आती रही हैं. यह एक ऐसी कुप्रथा विकसित होती गयी, जिसमें कई पीढ़ियां सिर्फ कर्ज चुकाने के नाम पर बंधुआ मजदूरी को मजबूर रहीं. इस समस्या के समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत थी. इस पर ध्यान देते हुए वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास को अधिक सक्षम तथा प्रभावी बनाने हेतु 17 मई, 2016 को ‘बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना, 2016’ की शुरुआत की गयी.
सरकार के इस कदम से कर्ज के नाम पर बंधुआ मजदूरी को रोकने में बड़ी सफलता की अपेक्षा की जा सकती है. केंद्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए तकनीक के माध्यम को सशक्त करने की दिशा में काम किया है. जून, 2015 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों की तस्करी को रोकने की दिशा में पुलिस और प्रशासन की कार्य क्षमता को तीव्र करने के लिए ‘खोया-पाया’ वेब पोर्टल की शुरुआत की है. केंद्र सरकार ने रोजगार से जुड़ी कामगार महिलाओं के जीवन में बेहतरी के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह कर दिया है.
हालांकि, इस समस्या पर सरकारी एवं कानूनी उपायों की जरूरत तो है ही, लेकिन इसमें सामाजिक जागरूकता एवं सहयोग की भूमिका को भी स्वीकार किया जाना चाहिए. सामाजिक रूप से सबका दायित्व है कि बाल श्रम, बंधुआ मजदूरी एवं इस किस्म के अपराधों को रोकने की दिशा में जागरूकता का प्रसार करने का कार्य करें.
इस काम में कुछ गैर-सरकारी संगठन एवं समाज के अन्य क्षेत्रों के लोग कार्य कर रहे हैं. लेकिन, वैश्विक पटल पर इस चिंता को जिस ढंग से देखा और समझा जा रहा है, ऐसे में जरूरत अभी और व्यापक स्तर पर पहल किये जाने की महसूस हो रही है. एक सुंदर समाज और सुंदर देश के निर्माण हेतु हमें सामूहिक प्रयासों से बंधुआ मजदूरी के इस कलंक को समूल समाप्त करने की चुनौती पर काम करना है. देश और संविधान के प्रति यह हमारा कर्तव्य भी है.

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