।। पुष्यमित्र।।
(प्रभात खबर, पटना)
बिहार के पत्रकार इन दिनों हैरान-परेशान हैं. किसी पार्टी के बारे में कुछ जानकारी लेनी हो तो समझ नहीं पा रहे कि किससे बात करें. पार्टी सुप्रीमो तो खास मौकों पर ही उपलब्ध होते हैं. बाकी रोज तो मझोले नेताओं से ही होती है. मगर इन मझोले नेताओं को लेकर इन दिनों काफी कन्फ्यूजन हो गया है. पता चलता है कि जो सुबह कांग्रेस में है, शाम को लोजपा में शामिल हो गया और अगली सुबह जब लोजपा का हाल पूछने के लिए उनको फोन लगाया तो पता चला कि नेताजी जदयू में जाने की तैयारी कर रहे हैं.
परसों सुबह एक साथी का फोन आया. बड़े नाराज थे. कहने लगे, बताओ कैसे रिपोर्टिग करें.. सुबह-सुबह अखबार पढ़ कर फलां यादव को फोन लगाया कि ये बताइये आज तक तो आप धर्मनिरपेक्ष थे, कल से राष्ट्रवादी हो जायेंगे न. वो मेरी बात सुनते ही गरम हो गये. कहने लगे, किसने कहा कि मैं भाजपा में जा रहा हूं. भाजपा में जाने से अच्छा है अपने बच्चों का खून पीना. हम लोग मिट जायेंगे, पर देश को सांप्रदायिकता की आग में धकेल नहीं सकते. हमने भी जोश में आकर उनकी खबर लिख दी कि जनाब कहीं चले जायें, मगर भाजपा में नहीं जायेंगे. सवेरे दूसरे अखबार में खबर थी कि वह मोदी को दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष शख्स बता रहे हैं. सुबह-सुबह संपादक ने फोन पर अच्छी खबर ली.
यह हाल केवल उनका नहीं है, कई साथियों का है. एक साथी ने फलां अहमद को फोन लगाया कि पासवान जी अपने कितने भाइयों को चुनाव में उतारेंगे, तो जनाब कहने लगे यह तो लोजपा वाले ही बतायेंगे. साथी ने पूछा- क्यों आप लोजपा में नहीं हैं? उधर से जवाब आया- सुबह तक था, पर अभी जदयू में हूं. नीतीश जी के बारे में कुछ पूछना हो तो बताइए. एक साथी ने फलां यादव को बधाई दी कि आपकी पत्नी को फलां पार्टी से टिकट मिल गया है. वे नाराज होकर कहने लगे कि आपको पता नहीं मैं उस पार्टी में नहीं हूं, मेरी पार्टी तो दूसरी है. आपको बधाई देना है तो सीधे मेरी पत्नी को दीजिये. दो मैडम एक जैसी नाम वाली और आपस में बहनें हैं, मगर हैं दोनों अलग-अलग पार्टियों में.
अब पत्रकार साथी एक से बात करनी होती है, तो गलती से दूसरी को फोन लगा देते हैं. और, दोनों की पार्टियों की विचारधारा और मुद्दे अलग-अलग हैं, सो एक का सवाल दूसरे से पूछ लेते हैं. बहनें भी अपने हिसाब से जवाब देकर आखिर में कहती हैं कि मेरा नाम यह है और मैं फलां पार्टी में हूं. कई साहब अपनी पार्टी में ही अंतिम समय काट रहे हैं, दूसरी पार्टी से कॉल नहीं आया है या फिर ज्वाइन करने का मौका अभी एक-दो दिन दूर है. वे खुद की पार्टी के खिलाफ ही बयान दे रहे हैं. बेहतर होता कि पार्टियां चुनाव के मौके पर एक डॉयरेक्ट्री ही छपवा लेतींख् ताकि हम पत्रकारों को पता चल जाता कि इस आवाजाही के बाद कौन कहां रह गया है, और कौन कहां चला गया.