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ट्रंप और चीन की तकरार

अनिश्चितताओं से भरे लगातार अप्रत्याशित फैसले ले रहे ट्रंप प्रशासन की दिशा और शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की बदलती दशा से स्पष्ट है कि साल 2017 अमेरिका-चीन संबंधों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है. व्यापार, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्व जैसे बेहद संवेदनशील मसलों पर दोनों […]

अनिश्चितताओं से भरे लगातार अप्रत्याशित फैसले ले रहे ट्रंप प्रशासन की दिशा और शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की बदलती दशा से स्पष्ट है कि साल 2017 अमेरिका-चीन संबंधों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है. व्यापार, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्व जैसे बेहद संवेदनशील मसलों पर दोनों परमाणु-शक्ति से संपन्न देशों को साझा सहमति के रास्ते पर बढ़ना होगा, अन्यथा यही मुद्दे निकट भविष्य में आर्थिक या सैन्य टकराव की वजह बन सकते हैं. वर्ष 1978 में ‘रिफॉर्म एंड ओपेनिंग अप’ नीति के साथ चीन ने बाजार अर्थव्यवस्था के लिए राह खोली, तो अमेरिका की बांछें खिल गयी थीं. शांतिपूर्ण उदय के साथ विकास पथ पर तेजी से बढ़ा चीन अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका नेतृत्व को चुनौती दे रहा है.
ओबामा प्रशासन की ‘पिवट टू एशिया’ नीति और ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को चीन के प्रभावों को कमतर करने और अपनी महाशक्ति की हैसियत को बरकरार रखने की कवायद ही है. पिछले नवंबर में अपनी जीत से पहले ही ट्रंप ने ‘बुरे चीन’ के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करने की बात कही थी. ट्रंप दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभावों, मुद्रा की धोखेबाजी और उत्तरी कोरिया में चीन की भूमिका पर सवाल खड़े कर चुके हैं. लेकिन, अमेरिका-चीन संबंधों और क्षेत्रीय शांति के लिए ज्यादा खतरनाक ट्रंप द्वारा एक चीन नीति का विरोध और ताइवान का समर्थन करना हो सकता है.
अपनी ‘वन चाइना’ नीति के तहत ताइवान को चीन अपना अविभाज्य हिस्सा मानता है और अमेरिका अब तक इसे स्वीकार करता रहा है. चीन में राजदूत रह चुके विंस्टन लॉर्ड का यह मानना कि ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से हटने का ट्रंप का फैसला भू-राजनीतिक और आर्थिक आपदा की तरह है, निश्चित ही यह अमेरिकी नजरिये से चिंताजनक है.
एशिया मामलों पर ओबामा के सलाहकार रह चुके इवन मेडिरॉस का भी यह कहना सही है कि अमेरिकी प्रशासन सभी मुद्दों को एक साथ लेकर चीन से नहीं निपट सकता. विवादित मुद्दों का हल निकालने की प्रक्रिया में अमेरिका और चीन को अपने द्विपक्षीय संबंधों के साथ क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व का भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि इनसे एशिया के अनेक देशों के हित भी जुड़े हुए हैं.

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