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कूटनीति के बदलते आयाम
इस हफ्ते अमेरिकी शासन की कमान बराक ओबामा से डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में चली जायेगी. पिछले आठ सालों में अमेरिका और भारत के बीच साझा लक्ष्यों को लेकर हुई प्रगति तथा सामरिक संबंधों में उत्साहजनक परिणाम ओबामा प्रशासन की उपलब्धियों के रूप में याद किया जायेगा. ओबामा कार्यकाल में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और […]
इस हफ्ते अमेरिकी शासन की कमान बराक ओबामा से डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में चली जायेगी. पिछले आठ सालों में अमेरिका और भारत के बीच साझा लक्ष्यों को लेकर हुई प्रगति तथा सामरिक संबंधों में उत्साहजनक परिणाम ओबामा प्रशासन की उपलब्धियों के रूप में याद किया जायेगा. ओबामा कार्यकाल में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के दौरों से द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई. दोनों देश स्वच्छ ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, ग्रीन-हाउस गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण, नवीकरणीय ऊर्जा, वैश्विक आतंकवाद के खतरों से निपटने पर बेझिझक चर्चा करते नजर आये, तो साइबर सहयोग और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाने पर सहमत हुए.
ओबामा प्रशासन में दक्षिण और मध्य-एशिया मामलों की सहायक सचिव निशा देशाई बिस्वाल ने हाल ही में एक साक्षात्कार में भारत-अमेरिका संबंधों के मौजूदा दौर को सबसे बेहतर बताया है. उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका और भारत के बढ़ते महत्व से आगामी प्रशासन भी भली-भांति वाकिफ है. दोनों देशों के आपसी रिश्तों की मजबूती का ही नतीजा है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारतीय दावेदारी का मजबूती से समर्थन करनेवाले ओबामा प्रशासन ने चीन की अड़ंगेबाजी पर कड़ी नाराजगी जतायी है. बीते नवंबर में चीन ने अपने रवैये में बदलाव करते हुए कहा था कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करनेवाले देशों के एनएसजी में प्रवेश के मुद्दे पर वह नये सिरे से चर्चा करने के पक्ष में है. हालांकि, भारत और चीन एनएसजी सदस्यता के मुद्दे पर परस्पर सामरिक परिपक्वता के साथ अंतरविरोधों को हल करने के लिए द्विपक्षीय विमर्श भी जारी रखे हुए हैं.
बीते कुछ सालों से भारत और अमेरिका के बीच रक्षा तकनीकों और संसाधनों के क्षेत्र में ठोस सहयोग भारत के बढ़ते महत्व को रेखांकित करते हैं. बहरहाल, बदलती विश्व व्यवस्था और समीकरणों के बीच अमेरिका और चीन के साथ संबंधों की गरमाहट को बरकरार रखना भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक चुनौती है. एक ओर, जहां भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को उत्तरोत्तर मजबूती देनी है, तो वहीं चीन जैसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पड़ोसी के साथ अपने रिश्तों के अहमियत को बनाये रखना है.
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