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अखनूर के सबक
आतंकवादियों के बंदूकों से निकली गोलियां कहां देखती हैं कि उनके निशाने पर कौन है? दुधमुंहा बच्चा, गर्भवती महिला, बदहाली की जिंदगी गुजार रहा बुजुर्ग या फिर घर चलाने के लिए परिवार से हजारों मील दूर आकर एक निहायत अनजान से इलाके में हाड़ तोड़ता मजदूर- आतंकवादी की गोलियां इनमें किसी पर रहम नहीं करतीं. […]
आतंकवादियों के बंदूकों से निकली गोलियां कहां देखती हैं कि उनके निशाने पर कौन है? दुधमुंहा बच्चा, गर्भवती महिला, बदहाली की जिंदगी गुजार रहा बुजुर्ग या फिर घर चलाने के लिए परिवार से हजारों मील दूर आकर एक निहायत अनजान से इलाके में हाड़ तोड़ता मजदूर- आतंकवादी की गोलियां इनमें किसी पर रहम नहीं करतीं.
जम्मू के अखनूर सेक्टर में हुई आतंकी घटना ने साबित किया है कि आतंकवाद के कोख से पनपी घृणा के निशाने पर कोई एक व्यक्ति, विचार या संस्था नहीं होते. आतंकवाद मूल रूप में पूरे समुदाय के ही खिलाफ होता है और इसी कारण समुदाय का प्रत्येक सदस्य और सामुदायिक जीवन को संभव बनानेवाली हर बात को खत्म कर देना चाहता है. अखनूर में आतंकियों ने सैनिकों को निशाना नहीं बनाया, उनके घृणा के शिकार बने तीन मजदूर. बेशक ये मजदूर बाॅर्डर रोड आॅर्गनाइजेशन के जेनरल इंजीनियरिंग रिजर्व फोर्स का हिस्सा थे, लेकिन थे तो आखिर मजदूर ही. उन्हें ना तो सैनिक कहा जा सकता है और ना ही सैनिकों का मददगार.
लेकिन, आतंकवादियों के लिए भारतीय सैनिक और भारतीय मजदूर में कोई फर्क नहीं, क्योंकि वे भारत नाम के पूरे राष्ट्र-समुदाय के खिलाफ हैं, इस समुदाय की रोजमर्रा की जिंदगी के प्रत्येक संकेत पर समान घृणा से हिंसा करते हैं. इस घटना ने साबित किया है कि पाक-प्रेरित आतंकवाद का पहला मकसद कश्मीरी अलगाववाद को हवा देना नहीं. कश्मीर में बर्फबारी के दिनों में आतंकी घटना को अंजाम देना मुश्किल होता है.
इस मुश्किल के पेशेनजर आतंकियों ने नियंत्रण रेखा से लगता अखनूर का इलाका चुना. उनकी मंशा साफ थी कि ना सही कश्मीर में, जम्मू में ही सही, किसी ना किसी भारतीय को मार गिराना है, चाहे वह सैनिक हो या मजदूर. अखनूर की आतंकी वारदात और नगरोटा की घटना के बीच पूरे चालीस दिन का फासला है. नगरोटा की सैनिक छावनी पर हुए आतंकी हमले से जाहिर हुआ था कि सर्जिकल स्ट्राइक की घटना भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ानेवाली भले सिद्ध हुई हो, लेकिन पाक-प्रेरित आतंकियों का नेटवर्क खत्म करने में उसे सफल करार नहीं दिया जा सकता.
अखनूर की घटना से साबित हुआ है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से लगते पूरे इलाके में सैन्य और असैन्य क्षेत्र का भेद भुलाते हुए हमें अपनी सुरक्षा तैयारियां करनी होगी और चौकसी बरतनी होगी, क्योंकि पाक-प्रेरित आतंकवाद का इरादा इस पूरे इलाके को एक अघोषित युद्ध-क्षेत्र बनाये रखने का है, जहां सैनिक और मजदूर के बीच का अनिवार्य फर्क मिट गया है. अखनूर की घटना का एक सबक यह भी है कि सीमावर्ती इलाकों में निर्माण-कार्य पहले की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षा-तैयारियों के बीच होना चाहिए.
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