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नया साल, नयी आशाएं

अनुपम त्रिवेदी राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक अपने आखिरी दो महीनों में नोटबंदी से देश को हिला देनेवाले साल 2016 का अंततः अंत हुआ. नये वर्ष 2017 के प्रारंभ में देश आशावान है. देश को कालेधन से मुक्ति दिलाने और अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने के मोदी सरकार के दुस्साहसी व महत्वाकांक्षी प्रयास के दूरगामी परिणाम क्या होंगे, यह […]

अनुपम त्रिवेदी
राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक
अपने आखिरी दो महीनों में नोटबंदी से देश को हिला देनेवाले साल 2016 का अंततः अंत हुआ. नये वर्ष 2017 के प्रारंभ में देश आशावान है. देश को कालेधन से मुक्ति दिलाने और अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने के मोदी सरकार के दुस्साहसी व महत्वाकांक्षी प्रयास के दूरगामी परिणाम क्या होंगे, यह तो समय ही बतायेगा, पर लोग आशा कर रहे हैं कि बीते साल की परेशानी देश की आगे की राह आसान करेगी. ‘जो होता है अच्छा ही होता है’ की अवधारणा वाले हमारे देश का आम आदमी नये साल में नयी आशाएं संजोये हुए है. क्या हैं ये आशाएं, आइये एक नजर डालें :
सस्ते मकान, सस्ता कर्ज : देश में लाखों परिवार अपने घर का सपना संजोये हुए हैं. शहरी आबादी में कुल 69 प्रतिशत परिवारों के पास ही अपनी छत है. पिछले दस वर्षों में कालेधन के प्रभाव से घर बेतहाशा महंगे होकर मध्यम और निम्न वर्ग की पहुंच से निकल गये थे. किराये के घरों और जैसे-तैसे गुजर-बसर करनेवालों के लिए घर खरीदना एक कभी न पूरा होनेवाले सपने जैसा था. लेकिन, अब अचानक ऐसा लगने लगा है कि यह सपना साकार हो सकता है. कालेधन पर हुई चोट से घरों और जमीनों की कीमतों में गिरावट शुरू हो गयी है. साथ ही गृह-ऋण और अन्य तरह के कर्जों में कम दरों की घोषणा बैंकों द्वारा साल की शुरुआत में ही कर दी गयी है. घटती कीमतों और सस्ते कर्ज ने बेघरों की आशाएं जगा दी हैं.
कालेधन व भ्रष्टाचार में कमी : नोटबंदी या मुद्रा परिवर्तन के मूल में जाहिर तौर पर सरकार का लक्ष्य कालेधन और भ्रष्टाचार पर चोट पहुंचाना था. इसमें कितनी सफलता मिली, अभी उसके आंकड़े आने बाकी हैं, पर यह तो तय है कि भ्रष्टाचार पर चोट तगड़ी पड़ी है. भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, पर आशा है कि उसमें कमी अवश्य आयेगी. भ्रष्टाचारियों के मन में बैठा डर और बढ़ता डिजिटल लेनदेन व पारदर्शिता मिल कर घूसखोरी को रोकेंगे. कालेधन में कमी आतंकवाद, ड्रग माफिया, हवाला, जाली नोटों और नक्सली गतिविधियों पर भी अंकुश लगायेगी, ऐसी आशा देश कर सकता है.
बेहतर अर्थव्यवस्था : दुनिया में सबसे तेजी से बढ़नेवाली हमारी अर्थव्यवस्था में बीते वर्ष की तिमाही में ब्रेक लगा है. आशा है कि अर्थव्यवस्था जल्दी ही नोटबंदी के झटके से उबर जायेगी और फिर से गति पकड़ लेगी. इसमें सार्थक योगदान जीएसटी से मिल सकता है, यदि सरकार इसको तय समय पर लागू कर सके तो. जीएसटी के लागू होने से जीडीपी में दो प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है. आशा है सब कुछ तय कार्यक्रम के अनुसार होगा.
पिछले दिनों हमारे छोटे उद्योगों और खुदरा व्यापारियों पर भी गहरी चोट पड़ी है. उनका व्यापार कम हुआ है और परिणामतः रोजगार सृजन में भारी कमी आयी है. यही स्थिति निर्माण क्षेत्र की भी है, जहां कैश की कमी के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों का पलायन हो गया है.
अकेले दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 40 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर और कामगार अपने घरों को लौट चुके हैं. आशा है कि स्थिति शीघ्र सामान्य होगी और नये साल में हालात बेहतर होंगे. कामगार वापस लौटेंगे और खरीदार फिर बाजारों का रुख करेंगे. बढ़ते डिजिटल लेनदेन का सार्थक असर भी हमें देखने को मिलेगा.
बजट से आशाएं : इस बार बजट जल्दी आ रहा है- 1 फरवरी को. देश राहत की आस लगाये हुए है. आशा है कि आगामी बजट लोक कल्याणकारी होगा. पिछले दो महीने से थके, परेशान देश और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बजट से संजीवनी मिलेगी, ऐसी आशा हम कर सकते हैं. बढ़े टैक्स कलेक्शन, कच्चे तेल की कीमतों में कमी, विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार और बैंकों में जमा धन से सरकार का खजाना लबालब है. इस समय बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश अर्थव्यवस्था में जान फूंक सकता है. इसीलिए आशा है व्यक्तिगत आयकर और व्यावसायिक कर की सीमा में छूट के अलावा, ढांचागत सुविधाओं के विस्तार, किसानों के लिए फार्म-पैकेज, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भारी निवेश और निर्माण क्षेत्र में कुछ नयी, बड़ी योजनाओं- जैसे आम आदमी के लिए घरों के निर्माण की घोषणा, की आशा की जा सकती है. इससे रोजगार सृजन भी होगा और बाजारों की रौनक भी लौटेगी.
साफ-सुथरी राजनीति : नये साल की शुरुआत में ही एक सुखद और सार्थक खबर सर्वोच्च न्यायालय से आयी, जहां सात न्यायाधीशों की बेंच ने जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगने पर रोक लगा दी है. इस ऐतिहासिक निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे. ऐसे दलों की दुकानें बंद हो जायेंगी, जो सिर्फ जाति और धर्म के नाम पर मतदाताओं को बरगलाने का काम करते हैं. आशा है कि जहां नोटबंदी और कालेधन पर चोट से वोटों की खरीद-फरोख्त पर लगाम लगेगी, वहीं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से जाति, धर्म का वोटों के लिए दुरुपयोग बंद होगा. आशा करनी चाहिए कि इस साल साफ-सुथरी राजनीति का आगाज होगा.
कूटनीति और विश्व-शांति : मोदी सरकार की सक्रीय कूटनीति ने भारत को दुनिया के अग्रिम देशों की पंक्ति में ला खड़ा किया है. आज अमेरिका, रूस और जापान आदि देशों के साथ हमारे प्रगाढ़ संबंध हैं. आशा है कि इसका सार्थक प्रभाव हमारे पड़ोस में भी होगा और अपने पड़ोसियों, खासकर चीन से हमारे संबंध बेहतर होंगे.
अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने पर दुनिया भर में अस्थिरता की आशंकाएं जतायी जा रही हैं. पर, इसके विपरीत आशा है कि ट्रंप के आने से दुनिया में शांति का नया युग शुरू होगा. ऐसा इसलिए कि दशकों के दुश्मन अमेरिका और रूस ट्रंप और पुतिन के नेतृत्व में दोस्ती की ओर कदम बढ़ा सकते हैं. इन दोनों महाशक्तियों की दोस्ती आधी दुनिया में हो रहे संघर्षों पर रोक लगा सकती है.
नये साल से बहुत आशाएं हैं, क्योंकि 2017 देश-दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण साल है. इसमें जो कुछ होगा, वह पूरे देश और दुनिया को लंबे समय तक प्रभावित करेगा. आइये आशा करते हैं कि यह साल हमारे जीवन पर एक सार्थक प्रभाव डालेगा.

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