सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को हटाने का निर्णय इस खेल के प्रबंधन की दशा और दिशा को बदल सकता है. न्यायालय ने दोनों से झूठी शपथ खाने और अदालत की अवमानना के आरोप का भी जवाब मांगा है.
लोढ़ा पैनल की सिफारिशों को लागू करने में असफल रहनेवाले बोर्ड और राज्य एसोसिएशनों के अन्य अधिकारियों को भी पद छोड़ने को कहा गया है. बोर्ड के प्रशासन और प्रबंधन में समुचित सुधार को लेकर बोर्ड और अदालत द्वारा गठित लोढ़ा पैनल के बीच की सालभर पुरानी रस्साकशी अब एक नये मुकाम पर आ पहुंची है. कुछ दिन पहले केंद्रीय खेल मंत्रालय ने भी संकेत दिया था कि उसे इस मामले में अदालत के अंतिम फैसले का इंतजार है तथा वह दिशा-निर्देशों को सभी राष्ट्रीय खेल संघों और ओलिंपिक कमिटी पर लागू करने का इच्छुक है. जो समस्याएं क्रिकेट बोर्ड के संचालन में हैं, अन्य खेल संघ भी उनसे ग्रस्त हैं.
नेताओं और नौकरशाहों का दबदबा और बेजा दखल, आंतरिक चुनावों में पारदर्शिता का अभाव और गुटबाजी, भ्रष्टाचार जैसे खामियों के कारण खेलों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है तथा इसका खामियाजा प्रतिभावान खिलाड़ियों और सक्षम प्रबंधकों को भुगतना पड़ता है. देश की सबसे बड़ी अदालत के प्रति क्रिकेट बोर्ड का अड़ियल रवैया भी बेहद चिंताजनक है. स्वायत्त संस्था होने का बहाना बना कर क्रिकेट बोर्ड या कोई अन्य खेल संघ मनमानी से नहीं चलाये जाने चाहिए. पिछले कुछ सालों से बोर्ड के चुनावों तथा खेलों के आयोजन में गड़बड़ियों की लगातार शिकायतों के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय को लोढ़ा पैनल का गठन करना पड़ा था.
अदालत के बार-बार कहने के बावजूद पैनल की मुख्य सिफारिशों पर बोर्ड द्वारा अमल नहीं किया जाना अदालत की खीझ का स्वाभाविक कारण बना. सुनवाई के दौरान और मीडिया में बोर्ड के अधिकारी अपनी जिद्द पर अड़े रहे. उम्मीद है कि इस ताजा झटके के बाद वे आत्ममंथन करेंगे तथा अदालत के सामने संतुलित समझ के साथ पेश होंगे. कुछ दिनों में एक अंतरिम प्रशासन भी कार्यभार संभाल लेगा. संतोष की बात है कि इस तनातनी के माहौल में भी हमारी टीमों का प्रदर्शन शानदार रहा है. सभी पक्षों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कानूनी लड़ाई में खेल पर नकारात्मक असर न पड़े.