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विश्व-कुटुंब के जमाने में स्थानीयता!

पिछले दिनों पाठक मत में एक पत्र, ‘झारखंडी अस्मिता के नाम पर राज्य बना’ पढ़ने को मिला. इसमें उठाये गये कुछ मुद्दों पर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं : 1. माना कि जब संसाधन और सेवाएं सीमित हों तब बाहरियों का प्रवेश स्थानीय लोगों में असंतोष की भावना को जन्म देता है, लेकिन आज […]

पिछले दिनों पाठक मत में एक पत्र, ‘झारखंडी अस्मिता के नाम पर राज्य बना’ पढ़ने को मिला. इसमें उठाये गये कुछ मुद्दों पर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं : 1. माना कि जब संसाधन और सेवाएं सीमित हों तब बाहरियों का प्रवेश स्थानीय लोगों में असंतोष की भावना को जन्म देता है, लेकिन आज जहां हम विश्व-कुटुंब और वैश्विक नागरिकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं तब ऐसे समय स्थानीयता जैसी छोटी भावना कितनी प्रासंगिक होगी?

2. जहां तक बाहरी लोगों के प्रवेश की बात है तो यह जानना जरूरी है कि झारखंड के विकास हेतु आधुनिक तकनीक, बुनियादी सेवाओं का विकास, बेहतर एवं उच्च शिक्षा को लाने के लिए बाहरियों का स्वागत करना ही होगा. 3. रही बात राज्य के पिछड़ेपन की, तो इसकी वजह बिहार नहीं झारखंड ही है. यहां के नेताओं द्वारा लूट-खसोट की राजनीति ही राज्य की बदहाली की जिम्मेवार है.

एक पाठक

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