डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
मनुष्य के विकास में जिस चीज ने सबसे ज्यादा योगदान किया है, वह मेरे खयाल से और कुछ नहीं, झुकना है. झुकना एक ऐसी क्रिया है, जो सामने वाले निष्क्रिय से निष्क्रिय प्राणी को भी द्रवित कर सक्रिय कर देती है. थोड़ा तोड़ कर इस्तेमाल किये जाने पर तो यह अगले को झुकने के लिए मजबूर भी कर देती है- झुक ना!
वानरों से उत्पन्न हमारे आदिम नरों ने झुकने का महत्व प्रारंभ में ही समझ लिया था और यही कारण था कि उन्होंने चार पैरों पर चलने के बजाय दो पैरों पर चलना तय किया और शेष दो पैरों को हाथ कह कर उनसे अन्य काम लेने शुरू कर दिये, जिनमें झुक कर दूसरे के पैर छूना मुख्य था.
यहां कुछ लोग यह सवाल उठा सकते हैं, जिसके लिए भगवान उन्हें उठायेगा, कि जब झुकना ही था, तो दो पैरों पर तन कर खड़े होने की क्या जरूरत थी? इसका सीधा-सा जवाब यही है कि झुकने के लिए तना होना जरूरी है, वरना पता कैसे चलेगा कि बंदा झुका है. झुके हुए का झुका होना कोई अर्थ नहीं रखता, तने हुए का झुकना ही अर्थ रखता है. इस तरह ‘तनना’ क्रिया ‘झुकना’ क्रिया की सहायक क्रिया ही नजर आती है.
झुकने में आदमी के शरीर के दो अंग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं- रीढ़ की हड्डी और सिर, जिसे कुछ लोग गरदन से जुड़ा होने के कारण ‘गरदन’ कह कर ही संबोधित कर देते हैं- दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार, जब जरा गरदन झुकाई देख ली. कुछ लोगों को देख कर लगता है, मानो उनका सिर झुकने के लिए ही बना हो.
उन्हें खुद पता नहीं चलता कि उनका सिर कब, कहां, किसके सामने झुक गया. अपनी परेशानी बेचारे यह गा-गाकर व्यक्त करते हैं- सजदे सिर झुकता है, यारा मैं क्या करूं? यारा भी क्या बताये, वह खुद इसी बात से परेशान है और सफाई देता फिरता है कि मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा.
दुनिया में जिसे देखो, दूसरों को झुकना सिखाने में लगा है. धर्म तो भक्तों को झुकने की सीख देते ही हैं, सत्ता भी जनता को झुकने पर आमादा किये रहती है. घर-बाहर सब जगह झुकने का इतना भारी महत्व देख माता-पिता भी बच्चों को झुकने की सीख दिये बिना नहीं रहते.
हमारी दादी बहुत मजाकिया थीं और अकसर हमारे बचाव में हमारे पिताजी द्वारा बचपन में किये कारनामे सुनाती रहती थीं. एक बार उन्होंने बताया कि जब तुम्हारा यह पिता छोटा था और मेरे साथ जंगल में घूमने जाया करता था, तो दूर से आती गधे के रेंकने की आवाज सुनते ही नतमस्तक होकर खड़ा हो जाता था. कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि एक बार इसके पूछने पर मैंने मजाक में कह दिया था कि यह जंगल के देवता की आवाज है.
कुछ स्थान और व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनके सामने मजबूरन सिर झुकाना पड़ता है, जैसे कि दफ्तर में बॉस. लेकिन कुछ स्थान और व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जिनके सामने सिर खुद-ब-खुद झुक जाता है, जैसे घर में बीवी. नोटबंदी के बाद से अब एटीएम और बैंक-कैशियर ने भी वही जगह ले ली है.
आप कहीं भी, किसी भी काम से जा रहे हों, रास्ते में एटीएम दिखते ही सिर अपने-आप झुक जाता है. उसमें से पैसे मिलें या न मिलें, और मिलें तो खैर क्यों और कैसे, क्योंकि जिस एटीएम का फुल फॉर्म कभी व्यवहार में ‘एनी टाइम मनी’ होता था, अब नोटों के अभाव में ‘आयेगा तो मिलेगा’ हो गया है. लेकिन पैसा न मिलने पर भी आदमी की श्रद्धा में कमी नहीं आती और वह खाली पड़ी मशीन के सामने भी नतमस्तक हो लाइन लगा कर खड़ा हो जाता है.