19 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विचारधारा और देश का माहौल

भारत आज एक ऐसी पार्टी के द्वारा शासित हो रहा है, जिसके पास एक विचारधारा है. इस विचारधारा को हिंदुत्व कहा जाता है. इस विचारधारा की तीन मांगें हैं- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना, अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण और समान नागरिक संहिता लागू करना. इन सभी मुद्दों को अल्पसंख्यक समुदायों […]

भारत आज एक ऐसी पार्टी के द्वारा शासित हो रहा है, जिसके पास एक विचारधारा है. इस विचारधारा को हिंदुत्व कहा जाता है. इस विचारधारा की तीन मांगें हैं- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना, अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण और समान नागरिक संहिता लागू करना.
इन सभी मुद्दों को अल्पसंख्यक समुदायों से कुछ चीजें लेने की जरूरत है. संविधान के अनुच्छेद 370 के संदर्भ में कश्मीर के मुसलिम बहुसंख्यकों को अपनी संवैधानिक स्वायत्तता छोड़नी होगी, राम जन्मभूमि मंदिर के लिए मुसलमानों को अपनी मसजिद छोड़नी होगी, और समान नागरिक संहिता के लिए उन्हें अपने पर्सनल लॉ का त्याग करना होगा.
इस तर्क से इन मांगों को सकारात्मक नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे नकारात्मक तौर पर और बहुसंख्यक आवेग के परिणाम के रूप में देखा जाना संभव है. मेरा आशय यह है कि इन मांगों के पीछे के उद्देश्य उतनी सही मंशा से प्रेरित नहीं दिखाई देते हैं, जैसा कि इनकी मांग करनेवाले दिखाना चाहते हैं. इस तर्क की वैधता हिंदुत्व (विचारधारा) द्वारा मसजिद गिराये जाने के बाद राममंदिर आंदोलन की परिणति से प्रमाणित होती है. लेकिन, वह आंदोलन नष्ट हो गया, क्योंकि वह मंदिर के पक्ष में सकारात्मक होने से कहीं अधिक नकारात्मक था, मसजिद के विरुद्ध था.
संविधान के अनुच्छेद 370 के मामले में कई वैधानिक मसले हैं, जो जम्मू-कश्मीर के पूर्ण विलय को बाधित करते हैं. लेकिन, सत्तासीन विचारधारा के उद्देश्य को संभवतः कश्मीर में मौजूदा स्थिति में देखा जा सकता है. राष्ट्रीय गर्व के वर्तमान माहौल में पाकिस्तान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई कश्मीर घाटी की घटनाओं पर हावी हो गयी है. परंतु, कश्मीर घाटी की हालत को संभालने के तौर-तरीकों पर विचार करने के लिए हमें देर-सबेर मजबूर होना ही पड़ेगा.
अब समान नागरिक संहिता पर माहौल बन रहा है और यह दो स्तरों पर हो रहा है. पहला, ‘तीन तलाक’ के खिलाफ कार्रवाई, जिसे पुरुषों के नियंत्रणवाला ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड बरकरार रखना चाहता है. तीन तलाक पुरुषों के लिए तलाक का एक त्वरित विकल्प है, जिसकी अनुमति पाकिस्तान समेत कई मुसलिम देशों में नहीं है. सरकार इसे अवैध बनाना चाहती है और अदालतें इस मत के पक्ष में दिख रही हैं. लेकिन, अगर ऐसा होता है, तो हमें बड़ी संख्या में गिरफ्तारियों के लिए तैयार रहना चाहिए. वहीं दूसरा मसला बहुविवाह का है. यही वह मुद्दा है, जिसमें हिंदुत्व की असली दिलचस्पी है. उसे ऐसा लगता है कि बहुविवाह के जरिये ही मुसलिम हिंदुओं के मुकाबले अधिक बच्चे पैदा करते हैं और एक समय ऐसा भी आयेगा, जब वे बहुसंख्यक हो जायेंगे. हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि बहुविवाह के मामले वास्तव में मुसलिमों के मुकाबले हिंदुओं में अधिक हैं, लेकिन मान्यता इतनी ताकतवर है कि वह समान नागरिक संहिता की मांग को संचालित कर रही है.
कुछ दिन पहले इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने लिखा था कि उदारवादियों और वामपंथियों (मेरी राय में उनका आशय साम्यवादियों से है, पर गलत भी हो सकता हूं) को क्यों समान नागरिक संहिता का समर्थन और बहुविवाह का विरोध करना चाहिए. हिंदुत्व की मांग के प्रति उनके विरोध को गुहा ने सात बिंदुओं के तहत रेखांकित किया है. 1- हिंदू पर्सनल लॉ में 1950 के दशक में हुए सुधार उतने प्रगतिशील नहीं थे, जितना बताया जाता है. 2- हिंदुओं के पारंपरिक कानून और रिवाज अकसर बहुत प्रतिगामी हैं, जैसे- खाप पंचायतें. 3- मुसलिम पर्सनल लॉ उतने प्रतिगामी नहीं हैं, जितना कि बताया जाता है, और कभी-कभी या अकसर वे महिलाओं को तर्कपूर्ण अधिकार भी देते हैं. 4- मुसलमानों के पारंपरिक रिवाज भी उतने बुरे नहीं है, जैसा कि कहा जाता है. मुसलिम बहुविवाह दूसरी या तीसरी पत्नी के साथ उस तरह भेदभाव नहीं करता है, जैसा कि हिंदू बहुविवाह में होता है या पहले होता था. 5- समान नागरिक संहिता की मांग भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित है. 6- समान नागरिक संहिता के लिए निर्दिष्ट संविधान का अनुच्छेद 44 का धर्म के प्रचार-प्रसार को सुनिश्चित करनेवाले अनुच्छेद 25 के साथ टकराव है. 7- संविधान के अनेक ऐसे अनुच्छेद हैं, जिनके निर्देश पूरे नहीं किये जा सके हैं, तो फिर इसी मुद्दे पर जोर क्यों?
मेरी राय में गुहा एक बात भूल रहे हैं, जिसे मैं बहुत महत्वपूर्ण समझता हूं, कि कुछ उदारवादी (यानी वे लोग, जो व्यक्तिगत अधिकारों के विस्तार के समर्थक हैं) इस सुधार का विरोध कर रहे हैं. दूसरी पत्नी या पति बनना किसी महिला या पुरुष का अधिकार है. भारत में कुछ समुदायों में बहुपतित्व की प्रथा है. यह सही है, जैसा कि एक सर्वे में बताया गया है कि 90 फीसदी मुसलिम महिलाएं बहुविवाह के विरोध में हैं, पर यह भी सच है कि 90 फीसदी मुसलिम महिलाएं एक स्त्री से विवाह वाले संबंधों में हैं. वैसे आंकड़े देखना दिलचस्प होगा, जिनमें उनके विचार होंगे, जो बहुविवाह वाले संबंधों में हैं.
रामचंद्र गुहा कहते हैं कि बहुविवाह एक ‘घृणास्पद प्रथा’ है, जिसे ‘अभी तुरंत खत्म’ कर दिया जाना चाहिए. मेरे विचार से यह एक नैतिक टिप्पणी है. भारतीय कानून और विभिन्न सरकारों द्वारा ऐसी ही बातें समलैंगिकता के बारे में कही गयी हैं. लेकिन, उदारवादी लोग एक व्यक्ति के अधिकारों के पक्ष में उस मामले में भी खड़े होंगे.
बहरहाल, यह सब कह चुकने के बाद मेरा अनुमान यह है कि इस मुद्दे पर माहौल बदल चुका है. तीन तलाक और बहुविवाह वे अगले आधार हो सकते हैं, जिनके सहारे हिंदुत्व अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेगा. और, जैसा कि अन्य मामलों में हुआ है, इस बार भी हमें मुसीबतों को लेकर आगाह रहना होगा.

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें