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पाकिस्तान क्यों नहीं मानता !
प्रमोद जोशी वरिष्ठ पत्रकार बीते 28-29 सितंबर की रात भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादियों पर जिस रणनीति के तहत हमला किया था, उसका लक्ष्य था पाकिस्तान को चेतावनी देना. अभी तक पाकिस्तान ने इस संदेश को नहीं समझा है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे अलग-थलग करने के लिए भारत मुहिम चला रहा है, […]
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
बीते 28-29 सितंबर की रात भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादियों पर जिस रणनीति के तहत हमला किया था, उसका लक्ष्य था पाकिस्तान को चेतावनी देना. अभी तक पाकिस्तान ने इस संदेश को नहीं समझा है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे अलग-थलग करने के लिए भारत मुहिम चला रहा है, पर लगता नहीं कि वह अकेला पड़ेगा. प्रकट रूप से उसके हौसले कम नहीं हुए हैं.
पता नहीं दुनिया हमारे नुक्त-ए-नजर को समझती भी है या नहीं. हम कहते हैं कि पाकिस्तान वैश्विक आतंकवाद की धुरी है, पर दुनिया इसे दो देशों का विवाद मानती है. वह है भी, पर मसला द्विपक्षीय विवाद से ज्यादा बड़ा है. विवाद के केंद्र में कश्मीर है, तो पाक को समझ लेना चाहिए कि कश्मीर चांदी की तश्तरी में रख कर नहीं मिलेगा. भारतीय जनमत इस मामले में समझौता नहीं करेगा. कश्मीर को लंबे अरसे तक शांत रखना होगा. तब ठंडे दिमाग से बैठ कर बातें करनी होंगी. पाकिस्तान जो हरकतें कर रहा है, उससे भारत में बेचैनी है और पाकिस्तान में जेहादी उन्माद.
26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए हमले के बाद जैसी नाराजगी देश में थी, उससे ज्यादा गुस्सा अब है. तब पाकिस्तान ने अपने देश में आतंकियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का कम-से-कम दिखावा तो किया था. इस बार वह भी नहीं किया. क्या वजह है कि वह खुल कर आतंकी भाषा बोल रहा है? वह भी संयुक्त राष्ट्र में. भारत के दावे के बावजूद वह अलग-थलग नहीं पड़ा. उसके साथ 57 देशों का इसलामिक संगठन है. तुर्की के साथ उसके अच्छे रिश्ते हैं. चीन से गाढ़ी दोस्ती. ईरान तक चाहता है चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर में शामिल होना. इधर रूस के साथ भी उसके रिश्तों में बेहतरी हुई है. इन बातों से उसका हौसला बढ़ा है, कम नहीं हुआ.
जिस दिन संयुक्त राष्ट्र में नवाज शरीफ भारत पर कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगा रहे थे, पाकिस्तानी और रूसी सेना का संयुक्त युद्धाभ्यास शुरू होनेवाला था. ऐसा कुछ साल पहले तक संभव नहीं था. क्या यह इसलिए कि हम अमेरिका के करीब चले गये हैं? नहीं. कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का मामला जब भी उठता है, पश्चिमी देश पाकिस्तान में बैठे जेहादी संगठनों की अनदेखी करते हैं.
जैशे-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को पाक में गतिविधियां चलाने की छूट है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में नवाज शरीफ ने बुरहान वानी को ‘लोकप्रिय युवा नेता’ कहा और पश्चिमी देशों के माथे पर बल नहीं पड़ा. पाक में सत्ता पर फौज काबिज हो रही है. इस पर दुनिया की निगाहें नहीं हैं.
उसे इस वक्त ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के साथ ‘डेमोक्रेटिक सर्जरी’ की जरूरत है. मई 2014 में नरेेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से अब तक के घटनाक्रम में एक बात साफ है, तब पाक सरकार कश्मीर को किनारे रख कर संबंध सुधारना चाहती थी, लेकिन आज आक्रामक है. पिछले साल जुलाई में रूस के उफा शहर में दोनों देशों ने तय किया कि बातचीत को आगे बढ़ाया जायेगा. 25 दिसंबर, 2015 को नरेंद्र मोदी काबुल से वापसी के समय लाहौर में रुके. तब तक तय था कि 15 जनवरी, 2016 को विदेश सचिवों की बैठक होगी. उसके एक हफ्ते बाद 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट पर हुए हमले ने सारी कहानी बदल दी.
नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 सितंबर का भाषण पढ़ने के पहले टेलीफोन पर राहील शरीफ को सुनाया था. विदेश नीति नागरिक सरकार के हाथ से निकल कर फौज के हाथ में चली गयी है. वहां जम्हूरियत और सियासत का मजाक बनता है और फौज की तारीफ होती है. उफा घोषणा के बाद सबसे पहले सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज को हटा कर उनकी जगह एक पुराने फौजी जनरल नसीर खान जंजुआ को सुरक्षा सलाहकार बनाया गया. बैंकॉक में अजित डोभाल और जंजुआ की बातचीत के बाद नया रोडमैप तैयार हुआ, जिसकी परिणति 15 जनवरी की सचिव वार्ता में होती. वहां से रह-रह कर खबरें आती हैं कि फौजी शासन की वापसी होगी.
घाटी में ‘पत्थर मारो आंदोलन’, उड़ी का हमला और संयुक्त राष्ट्र में नवाज शरीफ का भाषण इन तीनों बातों का एक-दूसरे से रिश्ता है. नवाज शरीफ ने कहा कि हम बातचीत को तैयार हैं, लेकिन भारत ‘अस्वीकार्य’ शर्तें लाद रहा है. क्या है भारत की ‘अस्वीकार्य’ शर्त? यही न कि पहले बात आतंक पर होगी. सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इशारा किया कि कुछ देश अपने हितों को देखते हुए आतंक के गढ़ की अनदेखी कर रहे हैं. उनका इशारा अमेरिका और चीन की ओर था.
नवाज शरीफ के वक्तव्य में पठानकोट और उड़ी का कोई हवाला नहीं था. उन्होंने परोक्ष रूप से कहा कि पाकिस्तान अपने एटमी हथियारों को बढ़ायेगा. इस साल जनवरी से सितंबर के बीच ही हालात में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है. जनवरी में नवाज ने नरेंद्र मोदी को फोन किया और पठानकोट बेस पर हुए हमले की जांच में हर संभव मदद का आश्वासन दिया था. पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक रूप से हमले की भर्त्सना भी की. और अब कहा जा रहा है कि उड़ी में हमला भारत ने खुद कराया है. दोनों बातों में गुणात्मक अंतर है.
भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से दो-तीन बातें साफ करने की कोशिश की है. पहली यह कि हम ‘सॉफ्ट स्टेट’ नहीं हैं. एटमी धमकी के बावजूद भारत आतंकी अड्डों पर हमला करेगा. यह नया संदेश है. हालांकि, पाक ने इस स्ट्राइक को सिरे से नकारा है, पर देखना होगा कि उसका बरताव बदलता है या नहीं. भारत ने इसलामी देशों के संगठन से भी संपर्क साधा है. पिछले कुछ समय में हमने अरब देशों के साथ रिश्ते सुधारे हैं. इनमें सऊदी अरब और यूएइ शामिल हैं. इन देशों ने इजरायल के साथ अपने रिश्ते भी सुधारे हैं. वैश्विक शक्ति-संतुलन भी बदल रहा है.
पाकिस्तान जिस दहशतगर्दी का प्रसार कर रहा है, उससे सुरक्षा मजबूत लोकतंत्र ही दे सकता है. उसे राजनयिक रूप से अलग-थलग करने के लिए प्रभावशाली मुहिम की जरूरत हमेशा बनी रहेगी. लेकिन, राजनयिक मुहिम से ज्यादा आर्थिक नीतियों की परीक्षा है. हमारी लड़ाई गरीबी और बदहाली से है, पर उसके लिए जो आर्थिक मजबूती चाहिए, वह हमसे दूर है. भारत ही नहीं, पाकिस्तान के लिए भी असली लड़ाई वही है.
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