देश की राजधानी में अरुणाचल प्रदेश के 19 वर्षीय छात्र निदो तनियाम की हत्या और दो दिन बाद ही दो मणिपुरी लड़कियों के साथ सरेआम मारपीट की घटनाओं ने फिर रेखांकित किया है कि पूर्वोत्तर भारत के लोग दिल्ली में व्यापक नस्लभेदी वातावरण में रहने के लिए अभिशप्त हैं. दिल्ली में रहनेवाले पूर्वोत्तर के लोग रोजमर्रा की जिंदगी में अपने साथ होनेवाले अपमान, अपराध और भेदभाव की शिकायत अकसर करते रहे हैं.
पूर्वोत्तरकी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जो इस महानगर के मानस में गहरे बैठे नस्ली पूर्वाग्रह को उजागर करते हैं. यह सही है कि नस्लभेद को साबित करना आसान नहीं है, पर दिल्ली के आम सोच-व्यवहार में पूर्वोत्तर के लोगों के रंग-रूप, खान-पान और रहन-सहन को लेकर जो अपमानजनक समझदारी बनी हुई है, उसे देखते हुए उनके साथ होनेवाले बरताव को नस्लभेदी मानना मुश्किल भी नहीं है. कई मामलों में ऐसी मानसिकता की भूमिका साफ दिखती है. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि अपने ही देश के किसी हिस्से में किसी दूसरे हिस्से के वासियों के तन-मन को चोटिल करनेवाला यह रवैया उन्हें किस कदर कुंठित और क्रोधित बना रहा है.
ऐसी वारदात को एक सामान्य आपराधिक मामला मानना समस्या से भागना होगा. इस आपराधिक सामाजिक संकट से निपटने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाने के लिए सरकारों, संस्थाओं और समाज को सबसे पहले यह सच स्वीकारना होगा कि हमारे महानगरों में नस्लभेद है. केवल पूर्वोत्तर के लोगों के साथ ही नहीं, नस्लभेद किसी के साथ और कहीं भी हो, उच्च मानवीय आदशरें के विरुद्ध है, जिसका विरोध होना ही चाहिए. कुछ दिन पहले दिल्ली में अफ्रीकी लड़कियों के साथ हुई घटना के संदर्भ में भी इसे समझा जाना चाहिए. ऐसी घटनाओं को रोकने और इसके अपराधियों को सजा दिलाने में कानून-व्यवस्था की लापरवाही चिंताजनक है.
निदो तनियाम प्रकरण में भी पुलिसकर्मी यदि दोषी पाये जाते हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जानी चाहिए, लेकिन यहां असली जरूरत पूरे पुलिसतंत्र को नस्लभेद के खिलाफ संवेदनशील बनाने की है. साथ ही, राजनेताओं और प्रशासकों को भी राष्ट्रीय एकता के प्रति गंभीर होना होगा.