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स्वतंत्रता के बहाने
इस वर्ष हम स्वतंत्रता की 70 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन इस समय हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या हम वाकई स्वतंत्र हैं? क्या आज हम भूख से, भय से, हिंसा से, भ्रष्टाचार से आजाद हैं? इन सबका जवाब होगा- नहीं. हमें 15 अगस्त 1947 को अंगरेजों की गुलामी से आजादी तो […]
इस वर्ष हम स्वतंत्रता की 70 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन इस समय हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या हम वाकई स्वतंत्र हैं? क्या आज हम भूख से, भय से, हिंसा से, भ्रष्टाचार से आजाद हैं?
इन सबका जवाब होगा- नहीं. हमें 15 अगस्त 1947 को अंगरेजों की गुलामी से आजादी तो मिली, पर वह आजादी एक राष्ट्र की आजादी थी. आज हमें जरूरत है उस व्यक्तिगत आजादी की, जिसमें दूसरों के प्रति कोई दुराभाव न हो. आज उस आजादी की जरूरत है, जिसमें कोई किसी के प्रति हिंसा न करे. जरूरत है देश को भ्रष्टाचार से आजादी दिलाने की. यह सब तभी संभव है जब हममें से हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझे.
स्वतंत्रता का अर्थ यह न समझें कि हम कुछ भी करने को आजाद हैं बल्कि यह समझने की जरूरत है कि स्वतंत्रता का एक नाम जिम्मेदारी भी है. हमारी सरकारों को भी चाहिए कि वे अपने हर कार्य में पारदर्शिता रखें. नौकरशाही पद्धति को छोड़नी होगी, उन्हें जनता का सेवक बनना होगा. जनता की समस्याएं सुननी पड़ेंगी. इसी कदम में झारखंड सरकार द्वारा चलाये जा रहे मुख्यमंत्री जन संवाद कार्यक्रम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इस कार्यक्रम में जनता की शिकायत का त्वरित निष्पादन किया जाता है जो विशेष रूप से सराहनीय है.
सकल देव सिंह, तोरपा
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