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जरूरी हस्तक्षेप
विभिन्न राज्यों में गोरक्षा के नाम पर बीते कई महीनों से हत्या, मारपीट, धमकाने और धन वसूलने की खबरें देश को परेशान कर रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन वारदातों पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए आपराधिक तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. इस वर्ष सात महीनों में गोरक्षा की आड़ में […]
विभिन्न राज्यों में गोरक्षा के नाम पर बीते कई महीनों से हत्या, मारपीट, धमकाने और धन वसूलने की खबरें देश को परेशान कर रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन वारदातों पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए आपराधिक तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. इस वर्ष सात महीनों में गोरक्षा की आड़ में बर्बरता के 14 बड़े मामले सामने आये हैं.
मारपीट और आतंकित करने की घटनाएं तो गिनती से परे हैं. इन असामाजिक आपराधिक तत्वों के निशाने पर अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के लोग रहे हैं. निश्चित रूप से देश चाहता है कि ऐसे प्रकरणों पर प्रधानमंत्री और सरकार अपनी राय स्पष्ट करें. यह स्वागतयोग्य है कि प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक शब्दों में गोरक्षा के बहाने की जा रही हिंसा की निंदा की है और इसे रोकने की बात कही है. तथ्य बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के अलावा अधिकतर घटनाएं भाजपा के शासनवाले राज्यों में ही हुई हैं तथा वहां की सरकारें आपराधिक गिरोहों पर लगाम लगा पाने में असफल रही हैं.
प्रधानमंत्री के हालिया बयान के बाद यह उम्मीद बंधी है कि भाजपा तथा उसकी सरकारें गोरक्षा के नाम पर चल रही हिंसा के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करेंगी. प्रधानमंत्री ने अपने संवाद में भागीदारी पर आधारित लोकतंत्र की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है और इसके प्रति अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को भी अभिव्यक्त किया है. निश्चित तौर पर भागीदारी और हिस्सेदारी के सकारात्मक वातावरण में ही लोकतांत्रिक व्यवस्था कारगर हो सकती है तथा देश के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है.
भारत विविधताओं का देश है और वैचारिक मतभिन्नता भी इसकी विशिष्टता है. ऐसे में बहुमत से चल रही सरकार के लिए सबको साथ लेकर चलना जरूरी हो जाता है. इसके लिए परस्पर विश्वास और पारदर्शिता का होना अहम हो जाता है. हमारा समाज कई आधारों पर पहले से ही बंटा हुआ है. पिछले कुछ समय से सामाजिक, सांप्रदायिक और आर्थिक विभाजन की खाई और बढ़ी है.
एक सशक्त राष्ट्र और मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होने की हमारी आकांक्षाओं के लिए यह स्थिति शुभ नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी से देश को बड़ी उम्मीदें रही हैं और उनके संबोधन ने इन उम्मीदों को और भरोसा दिया है. इन्हें हकीकत का जामा देने के लिए सरकार और उनकी पार्टी को ईमानदार प्रतिबद्धता के साथ कदम बढ़ाना चाहिए. सकारात्मक सोच दिलो-दिमाग से उतर कर व्यवहार में परिलक्षित होगी, तभी बात बनेगी और देश बेहतरी की ओर अग्रसर होगा.
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