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भ्रष्टाचार की जड़ें
बिहार में अनुमंडलाधिकारी के रूप में तैनात एक युवा आइएएस अधिकारी को रिश्वत के मामले में पकड़ा गया है. खास बात यह है कि इस अधिकारी की यह पहली नियुक्ति थी. हमारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं, कि ऐसी खबरें जनमानस को परेशान नहीं करती हैं. […]
बिहार में अनुमंडलाधिकारी के रूप में तैनात एक युवा आइएएस अधिकारी को रिश्वत के मामले में पकड़ा गया है. खास बात यह है कि इस अधिकारी की यह पहली नियुक्ति थी. हमारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं, कि ऐसी खबरें जनमानस को परेशान नहीं करती हैं. क्या इस घटना को किसी एक अधिकारी या अधिकारियों या फिर सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की सामान्य घटना के रूप में ही देखा जाना चाहिए या इसके व्यापक संदर्भ भी हो सकते हैं?
क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि स्कूलों-कॉलेजों, मीडिया, राजनीतिक तथा प्रशासनिक प्रतिष्ठानों में कही-सुनी जानेवाली नैतिकता और कर्तव्यपरायणता की बातें महज बातें है, हमारा जीने का तरीका इसके बिल्कुल अलग है? प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘नमक का दारोगा’ में युवा वंशीधर को उसके पिता सलाह देते हैं कि नौकरी का ओहदा ‘पीर का मजार’ है, मासिक वेतन ‘पूर्णमासी का चांद’ है और ‘ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है’.
ईमानदार वंशीधर जब अपनी ईमानदारी के कारण नौकरी से निकाल दिये जाते हैं, तो उनसे मां, बाप और पत्नी बुरी तरह नाराज होते हैं. क्या यह आत्ममंथन नहीं होना चाहिए कि आज भी भ्रष्टाचार के लगातार बढ़ते जाने के कुछ सूत्र हमारे परिवार, समाज और शासन ही तो नहीं मौजूद हैं? कहानी के आखिर में तो बेईमान पंडित अलोपीदीन को वंशीधर की प्रशंसा करते हुए उन्हें अपनी जायदाद का मैनेजर नियुक्त करते हुए दिखाया गया, पर प्रेमचंद ने यह नहीं बताया कि क्या उन्होंने वे धंधे बंद कर दिये, जिनसे यह जायदाद जमा हुई थी.
तो क्या अब दो ही रास्ते हैं अधिकारियों के पास- या तो वे बेईमान बनें या फिर अपनी ईमानदारी को किसी बेईमान की सेवा-टहल में हाजिर कर दें? रिश्वत लेना अपराध है, पर हमें यह भी याद रहना चाहिए कि रिश्वत देना भी अपराध है. भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए कानून और संस्थाएं तो हैं, पर ये भी इस बीमारी से मुक्त नहीं हैं.
देश का खासो-आम अगर बेईमानी के इस मुश्किल का मारा हुआ है, तो यह भी सच है कि इस बीमारी को बनाने-बढ़ाने में भी इनकी भूमिका कम नहीं है. बिहार के इस अधिकारी के बारे में फैसला तो कानून करेगा, पर भ्रष्टाचार का इलाज तो समाज और सरकार को ही करना है.
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