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सरकारी प्राथमिक शिक्षा की नाकामी

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के साथ प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा हासिल करना प्रत्येक नागरिक के बुनियादी अधिकार में शामिल हो गया है. राजनीतिक मायने में अधिकार का अर्थ है एक ऐसा वायदा, जिसे निभाने की सरकार की तरफ से गारंटी होती है. जितने साल केंद्र में यूपीए को शासन संभाले हुए हैं, […]

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के साथ प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा हासिल करना प्रत्येक नागरिक के बुनियादी अधिकार में शामिल हो गया है. राजनीतिक मायने में अधिकार का अर्थ है एक ऐसा वायदा, जिसे निभाने की सरकार की तरफ से गारंटी होती है. जितने साल केंद्र में यूपीए को शासन संभाले हुए हैं, उतने ही साल स्वयंसेवी संस्था ‘प्रथम’ को प्राथमिक शिक्षा की दशा-दिशा पर एनुएल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) प्रकाशित करते हुए हैं.

ताजा रिपोर्ट बताती है कि यूपीए सरकार नागरिकों को हासिल शिक्षा के बुनियादी अधिकार को ठीक-ठीक प्रदान करने में नाकाम रही है. रिपोर्ट यह तो मानती है कि प्राथमिक शिक्षा के मामले में प्रगति के लिए स्कूलों में बच्चों का नामांकन प्रतिशत बढ़ना, कक्षा में छात्रों की उपस्थिति, शिक्षक-छात्र अनुपात और शिक्षकों की मौजूदगी आदि जरूरी तत्व हैं, लेकिन वह इन बातों के

ऊपर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को तरजीह देती है. इस बार भी ‘असर’ के तथ्य इशारा कर रहे हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सरकारी स्कूली शिक्षा लगातार पिछड़ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या 93 फीसदी थी, जो आठ सालों में बढ़ कर 97 फीसदी हो गयी है, पर इसी अवधि में स्कूली बच्चों की शैक्षिक परिलब्धि में गिरावट आयी है. यह गिरावट भाषायी दक्षता और गणितीय कौशल, दोनों में दिखती है. 2005 में दूसरी कक्षा के बोधस्तर के लायक तैयार पाठ को पांचवीं क्लास के पांच में तीन विद्यार्थी पढ़ने में सक्षम थे, तो आठ सालों बाद ऐसे विद्यार्थियों की संख्या घट कर प्रत्येक दो में से एक रह गयी है. गुणा कर सकने की गणितीय क्षमता वाले विद्यार्थियों की संख्या (आठवीं कक्षा के) में भी गत आठ सालों में 23 फीसदी घटी है.

रिपोर्ट बताती है कि सरकारी शिक्षा-व्यवस्था को गुणवत्ता के मामले में फिसड्डी मान कर अभिभावक प्राइवेट स्कूलों का रुख कर रहे हैं. प्राथमिक शिक्षा जिम्मेवार और संभावनाशील नागरिक तैयार करने की शुरुआती सीढ़ी है. इसलिए समय रहते सोचा जाना चाहिए कि इस पहली सीढ़ी पर ही प्राइवेट और सरकारी शिक्षा के बीच गुणवत्ता के मामले में मौजूद खाई संभावनाओं व अवसरों के मामले में दो नागरिकों के बीच असमानता की बुनियाद न डाल दे.

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