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लोकतंत्र का मजाक?
पिछले दिनों जिस तरह से ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर घोटाले के मामले पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ और संसद की कार्यवाही ठप की गयी, ऐसे वाकयों से हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया है़ आखिर क्यों राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर आम जन मानस की आकांक्षाओं पर कुठाराघात […]
पिछले दिनों जिस तरह से ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर घोटाले के मामले पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ और संसद की कार्यवाही ठप की गयी, ऐसे वाकयों से हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया है़
आखिर क्यों राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर आम जन मानस की आकांक्षाओं पर कुठाराघात कर रहे हैं? गौर करने वाली बात यह है कि हमारे राजनीतिक दल खुद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही दूसरों की जड़ें खोदने लगते हैं़ खुद पर लगे आरोपों को छिपाने का सबसे बड़ा जरिया उन्हें यही नजर आता है कि दूसरों के दाग चीख-चीख कर दिखलाये जायें. आखिर ये लोग हिमायत किसकी कर रहे हैं? कम से कम लोकतंत्र का यूं मजाक न बनायें!
अमित अनुपम, ई-मेल से
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