आज के इंटरनेट युग में फेसबुक किसी पहचान का मोहताज नहीं है. सामाजिक प्राणी के तौर पर इनसान हमेशा ही एक-दूजे के साथ जुड़ा रहना चाहता है. इनसान की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति बरास्ता खत और टेलीफोन, फेसबुक के जरिये जाहिर होती आ रही है.
यूं तो फेसबुक कोई खराब चीज नहीं है, पर किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती. अगर इसका इस्तेमाल अच्छे मकसद के साथ हो तो बेहतर है. और, अगर यह सिर्फ मौज-मस्ती का साधन बन कर रह जाये, तो यह हानिकारक ही सिद्ध होगा. खासकर कम उम्र के बच्चों के लिए, जिन्हें इन दिनों फेसबुक की लत लगती जा रही है.
इंटरनेट पर नापाक मंशा रखनेवाले ऐसे कई ‘बग’ हैं, जो आपको ऊटपटांग हरकतों से बदनाम कर सकते हैं. किसी की देखा-देखी, बिना किसी मतलब के बहती धारा में कूद जाना, अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
आनंद कानू, सिलीगुड़ी