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जमीनी हकीकत समझें कांग्रेस नेता

झारखंड कांग्रेस आपसी कलह से गुजर रही है. सरकार में भले उसकी हिस्सेदारी है, पर संगठन में विवाद को देखते हुए उसके भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं. हाल ही में जब कांग्रेस की प्रदेश समिति बनी, उस पर सवाल उठे. अध्यक्ष सुखदेव भगत पर आरोप लगा कि उन्होंने कई जिलों की उपेक्षा की है. […]

झारखंड कांग्रेस आपसी कलह से गुजर रही है. सरकार में भले उसकी हिस्सेदारी है, पर संगठन में विवाद को देखते हुए उसके भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं. हाल ही में जब कांग्रेस की प्रदेश समिति बनी, उस पर सवाल उठे. अध्यक्ष सुखदेव भगत पर आरोप लगा कि उन्होंने कई जिलों की उपेक्षा की है. कई जिलों से किसी को नहीं रखा गया है. ऐसे आरोप पहले भी लगते रहे हैं, जब दूसरे अध्यक्ष होते थे.

आज स्थिति यह है कि झारखंड-बिहार में 24 साल से कांग्रेसनीत सरकार नहीं बनी है. कांग्रेस सहयोगी दल बन कर रह गयी है. इसके बावजूद वह चेती नहीं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू और पूर्व विधायक मनोज यादव ने वर्तमान अध्यक्ष पर हमला बोला है. कांग्रेस के सदस्य हर गांव में मिल जायेंगे. बड़ी पार्टी है. राष्ट्रीय पार्टी है. फिर भी उसके कार्यकर्ता निराश हैं, निष्क्रिय हैं. हरि प्रसाद झारखंड प्रदेश के प्रभारी हैं. जमीनी हकीकत को पहचानने में वह अब तक विफल रहे हैं. जब तक कांग्रेस के आला नेताओं का झारखंड के गांवों का दौरा नहीं होगा, वे आम कार्यकर्ता से नहीं मिलेंगे, पार्टी की सच्चई को नहीं जान पायेंगे.

रांची के कांग्रेस भवन में बैठक करने और कुछ विधायकों से मिल लेने से पार्टी का कल्याण नहीं होगा. झारखंड में कांग्रेस आज तक राज्य स्तरीय कोई बड़ी रैली नहीं कर पायी है. कांग्रेस को अपनी ताकत बढ़ानी होगी. इसके लिए संगठन को जिंंदा करना होगा. यह भी सही है कि जिस नेता को कमेटी में नहीं लिया जाता, वह विरोध में खड़ा होता है, आरोप लगाने लगता है. यह अलग मसला है. इससे निबटना भी पार्टी के शीर्ष नेताओं का काम है. पार्टी अध्यक्ष का पद ताकतवर होता है. अपने कार्य से उन्हें बताना होगा, पार्टी के कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाना होगा कि किसी कार्यकर्ता-नेता के साथ अन्याय नहीं होगा.

लोकसभा चुनाव में तीन-चार माह रह गये हैं. ऐसे में अगर पार्टी के नेता आपस में लड़ते रहे, तो भला नहीं होगा. पार्टी के नेताओं को रांची शहर से बाहर निकलना होगा. जनता के बीच जाना होगा. जिन दिनों शकील अहमद झारखंड के प्रभारी हुआ करते थे, खुद एक-एक चीज पर नजर रखते थे. उनका क्रेज था. कार्यकर्ता-नेता से खुद मिलते थे. वर्तमान प्रभारी को झारखंड के लिए और समय देना होगा, सहज होना होगा.

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