पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
अपने देश का संस्कृति मंत्रालय कुछ अजब-गजब है. सुप्रीम कोर्ट ने कोहिनूर की वापसी पर मोदी सरकार का पक्ष पूछा था, लेकिन जब बात पंजाब तक में बिगड़ने लगी, और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसे आड़े हाथ लिया, तो तपाक से ‘टोपी’ पंडित नेहरू को पहना दी गयी.
संस्कृति मंत्रालय ने पलटी मारी और कहा कि हमने नहीं, 1956 में पंडित नेहरू ने बयान दिया था कि ब्रिटेन को ‘उपहार’ में दी गयी वस्तु की वापसी में परेशानी पैदा होगी, क्योंकि दलीप सिंह ने लाॅर्ड डलहौजी को कोहिनूर उपहार में दिया था. इस बयान के दूसरे दिन ‘पीआइबी’ के जरिये संस्कृति मंत्रालय ने सफाई में कहा कि साॅलिसीटर जनरल रणजीत कुमार ने पंडित नेहरू को ‘कोट’ किया था, सरकार तो कोहिनूर की वापसी का प्रयास करेगी.
सवाल है कि कोहिनूर हीरे पर क्या सुप्रीम कोर्ट ने पंडित नेहरू का विचार पूछा था? यह रिकाॅर्ड सरकार को पेश करने चाहिए. भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज अरसे से कोहिनूर की वापसी की आवाज उठा रहे थे. वे भी हैरान हैं कि राष्ट्रवादी सरकार का यह कैसा ‘स्टैंड’ है!
कीथ की विवशता थी, सो थक-हार कर ब्रिटिश संसद में उन्होंने भारत सरकार के पक्ष का स्वागत किया. अब भारत सरकार बयान सुधारती रहे कि यह हमने नहीं कहा, ‘कश्मीर पर जनमतसंग्रह जैसी गलतबयानी’ करनेवाले उस पूर्व प्रधानमंत्री का वक्तव्य था, जिसने साठ साल पहले कोहिनूर पर अंगरेजों का साथ दिया था. हमारा संस्कृति मंत्रालय जिस तरह से नेहरू के बयानों को खोद कर निकालने में व्यस्त है, वैसी खुदाई मोहनजोदड़ो-हड़प्पा की भी नहीं हुई. कांग्रेस के नेताओं का आधा समय नेहरू के बयानों पर सफाई में निकल रहा है.
ब्रिटिश हाउस आॅफ काॅमन्स के दस्तावेज बताते हैं कि 1947 में देश की आजादी के तुरंत बाद कोहिनूर की वापसी की मांग की गयी. दूसरी मांग 2 जून, 1953 को की गयी, तब साम्राज्ञी एलिजाबेथ द्वितीय का राज्याभिषेक हो रहा था.
उस समय पंडित नेहरू इस देश के प्रधानमंत्री थे. 1990 में पत्रकार कुलदीप नैयर ने ब्रिटेन में भारत का उच्चायुक्त रहते कोहिनूर की वापसी के लिए ब्रिटिश सरकार से पत्राचार शुरू किया. जाहिर है, सरकार की सहमति के बगैर उच्चायुक्त ऐसे प्रयास नहीं करते. 1997 में कुलदीप नैयर राज्यसभा के सदस्य बने, मगर कोहिनूर की कसक से वे उबरे नहीं.
साल 2000 में कोई 50 सांसदों ने कोहिनूर की वापसी को लेकर एक प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किया, उनमें नेता प्रतिपक्ष मनमोहन सिंह भी थे. तो क्या मनमोहन सिंह, पंडित नेहरू के लाइन के विरुद्ध जा रहे थे? कुलदीप नैयर ने 29 नवंबर, 2015 को ‘व्हाइ डिड पीएम मोदी नाॅट आस्क फाॅर द कोहिनूर’ में लिखा, ‘तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मुझसे कहा था कि आप भारत और ब्रिटेन के बीच रिश्ते बिगाड़ रहे हैं.’ इसका अर्थ यही है कि ‘एनडीए’ सरकार नहीं चाहती थी कि कोहिनूर की वापसी हो.
विरासत वापसी की लड़ाई कई देश लड़ते रहे हैं. ब्रिटिश म्यूजियम लंदन में लगी, डेढ़ सौ साल पहले एथेंस के एक्रोपोलिस से उड़ायी ‘एल्गिन मार्बल’ की वापसी की लड़ाई यूरोपियन कोर्ट आॅफ जस्टिस, यूरोपीय संघ और यूनेस्को तक पहुंची हुई है.
इससे क्या ग्रीस और ब्रिटेन के संबंध बिगड़ गये? यूनेस्को के उस प्रस्तावना के आधार पर दुनिया के बहुत सारे देश बाध्य हो रहे हैं कि चोरी या धोखे से लायी गयी धरोहर उनके देश वापस की जाये. वायसराय डलहौजी ने दरअसल फ्राॅड किया था.
एक बारह साल के बालक दलीप सिंह से कोहिनूर हासिल करने के तरीके को आज की पुलिस, अदालत ठगी की श्रेणी में ही रखेगी.
‘टावर आॅफ लंदन’ में कोहिनूर देखने का मौका अगस्त 2006 में मुझे मिला था. कोहिनूर तो सिर्फ 105.6 कैरेट का है, मगर इस नायाब हीरे के इतिहास ने उसे बाकी सारे हीरों से महत्वपूर्ण और वजनदार बना दिया है. टावर आॅफ लंदन में ही 503.2 कैरेट का ‘कलिनम-1’ और 317.4 कैरेट का ‘कलिनम-2’ हीरा रखा हुआ है. दक्षिण अफ्रीका के खान से लाये कलिनम हीरे, कोहिनूर की तरह दर्शकों को विस्मृत नहीं करते. 410 कैरेट का ‘रीजेंट डायमंड’ पैरिस के लूव्र म्यूजियम में है. क्रेमलिन के खजाने में 300 कैरेट का ‘ओरलोफ डायमंड’ है.
सेंट्रल बैंक आॅफ ईरान की निगरानी में 182 कैरेट का ‘दरिया-ए-नूर’ और 67 कैरेट का ‘होप डायमंड’ वाशिंगटन के ‘अमेरिकन म्यूजियम आॅफ नेचुरल हिस्ट्री’ में रखे गये हैं. जर्मनी के द्रेसदेन में 41 कैरेट का ‘ग्रीन वाॅल्ट डायमंड’ है. ये सभी हीरे आंध्र प्रदेश के रायलसीमा जिले के गोलकुंडा और कोल्लुर खानों से निकले हैं. तो क्या हमें इन हीरों की वापसी का प्रयास नहीं करना चाहिए?