सरकार, उनके बच्चे बिलख रहे हैं, पत्नी बदहवास है, घरवाले हताश हैं और ग्रामीण भयाक्रांत. झारखंड में ऐसे माहौल के लिए कौन जिम्मेवार है? जसीडीह से पुल निर्माण कंपनी के सात कर्मियों को अगवा हुए सात दिन बीत गये. पुलिस के अनुसार, नक्सलियों ने अगवा किया है. लेवी के लिए. इनकी रिहाई के लिए न तो कंपनी लेवी देने को तैयार है, न ही पुलिस को अब तक कोई सफलता मिली है.
अगवा कर्मियों की जान सांसत में है. पर किसे परवाह है? ऐसी अहम घटना पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है. देवघर वह जिला है, जहां से सरकार में दो मंत्री व एक विधानसभा अध्यक्ष हैं. लेकिन, दु:खद है कि ये सभी जनप्रतिनिधि अब तक एक शब्द भी नहीं बोले हैं. क्या ये नक्सलियों से डरे हुए हैं? अगर ऐसा है तो यहां की जनता सरकार पर भरोसा क्यों करे? ऐसी सरकार किसके लिए है? हम भारत में लोक कल्याणकारी राज्य की बात करते हैं. सरकार किसी की भी हो, आम लोगों का कल्याण होना चाहिए. क्या ये अगवा सात लोग सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं?
अगवा कर्मियों के परिजन सहमे हैं. रिहाई के लिए बार-बार नक्सलियों से गुहार लगा रहे हैं. यानी उन्हें पुलिस से ज्यादा नक्सलियों पर भरोसा है कि शायद तरस खा कर अपहृतों को रिहा कर दें. इस घटना के विरोध में जसीडीह के बोढ़निया गांव में ग्रामीण एक दिन के सामूहिक उपवास पर भी रहे. ये ग्रामीण अपनों की रिहाई चाहते हैं और इसके लिए गुहार लगा रहे हैं. पर पुलिस की अब तक की कार्रवाई से लगता है कि शायद वह इस बात का इंतजार कर रही है कि कंपनी नक्सलियों को लेवी दे दे और अगवा मजदूरों की रिहाई हो जाये.
सीमावर्ती क्षेत्रों में तलाशी अभियान चलाने की बात कह देवघर की पुलिस हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है. वह शायद पुलिस शब्द को भी शर्मसार कर रही है. जब कोई पुलिस में भरती होता है, तो शपथ लेता है कि लोगों की जान-माल की रक्षा व कानून-व्यवस्था को कायम कराना ही उनके जीने का मकसद होगा. झारखंड की सरकार को इस मुद्दे पर कम से कम मानवता की खातिर आगे आना चाहिए. अगवा मजूदरों के परिजनों को ढांढस बंधाना चाहिए और इस दिशा में कदम उठाते हुए सकारात्मक पहल करनी चाहिए.