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उत्तराखंड की सियासत
आखिरकार राजनीतिक उहापोह की बीच उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. बीते कई दिनों से वहां सियासी घमासान चला आ रहा था़ वहां बीते कई वर्षों से घोटालों का बोलबाला रहा है, जिनके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं. युवा रोजगार की आस में दर-दर भटक रहे हैं. इस तरफ वहां […]
आखिरकार राजनीतिक उहापोह की बीच उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. बीते कई दिनों से वहां सियासी घमासान चला आ रहा था़ वहां बीते कई वर्षों से घोटालों का बोलबाला रहा है, जिनके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं. युवा रोजगार की आस में दर-दर भटक रहे हैं. इस तरफ वहां के नेताओं का ध्यान आकृष्ट नहीं हो रहा है. वे तो बस कुर्सी की चाहत में राजनैतिक समीकरणों को बनाने-बिगाड़ने में लगे हुए हैं.
इस छोटे से राज्य की संवैधानिक व्यवस्था चरमरा-सी गयी थी, जिसे सुधारने के लिए अंततः राष्ट्रपति शासन लागू करना ही पड़ा. सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, देश के अधिकांश छोटे राज्यों की हालात प्रायः एक-सी है. इनका गठन स्थानीय जनता की उन्नति व खुशहाली के लिए होता है, लेकिन राजनीति के गंदे खेल में नेता मजे लूटते हैं और जनता हाशिये पर चली जाती है़ बहरहाल, राज्य की बेहतरी में विधानसभा अविलंब भंग हो और चुनाव कराये जायें.
आदित्य शर्मा, दुमका
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