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भारत माता कहां रहती हैं?

यह सवाल किसी को भी बेतुका और अटपटा लग सकता है कि भारत माता कहां रहती हैं. पंत ने जब भारत माता को ‘ग्रामवासिनी’ कहा था, तो उन्होंने इसे किसानों से जोड़ा था. साल 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंगरेजों से जो सिपाही लड़े थे, वे किसानों के ही बेटे थे. भारत माता का […]

यह सवाल किसी को भी बेतुका और अटपटा लग सकता है कि भारत माता कहां रहती हैं. पंत ने जब भारत माता को ‘ग्रामवासिनी’ कहा था, तो उन्होंने इसे किसानों से जोड़ा था. साल 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंगरेजों से जो सिपाही लड़े थे, वे किसानों के ही बेटे थे. भारत माता का बिंब उन्नीसवीं सदी में निर्मित हुआ.

कांग्रेस की स्थापना (1885) के पहले 1873 में किरनचंद्र बनर्जी के नाटक ‘भारत माता’ और 1883 में बंकिम के उपन्यास ‘आनंदमठ’ में से उपस्थित हो चुकी थीं. मुसलिम लीग (1906) और आरएसएस (1925) का गठन बहुत बाद में हुआ. ‘भारत माता की जय’ का नारा स्वाधीनता-आंदोलन से जुड़ा है. आधुनिक भारतीय चित्रकला के जनक अवनींद्रनाथ ठाकुर ने 1905 में जो चित्र बनाया, उसका शीर्षक पहले ‘बंग माता’ था. बाद में उसे ‘भारत माता’ का शीर्षक दिया गया. उस चित्र में उनके चार हाथ-शिक्षा, दीक्षा, अन्न और वस्त्र हैं.

ब्रिटिश भारत में उनका ‘आंचल’ ‘मैला’ नहीं था. 1905 में ही कन्हैयालाल मुंशी ने अरविंद घोष से किसी के भी राष्ट्रभक्त होने के तरीकों के बारे में पूछा था. अरविंद ने उन्हें ब्रिटिश भारत का नक्शा दिखा कर उसे भारत माता का चित्र बताया था. हिंदू राष्ट्रवाद के पिताओं में से एक अरविंद घोष ने पर्वतों, नदियों, जंगल आदि को भारत माता का शरीर कहा था. उनकी सभी संतानों को उन्होंने उस शरीर की तंत्रिका बताया था. जीवित मां के रूप में उसे वे देख रहे थे और उसकी पूजा करने को कह रहे थे. हमलावरों के खिलाफ ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाये जाते थे. आज भारत पर किसने हमला किया है? हमलावर कौन है? कहां है? किस देश में है? भारतीय जनता पार्टी के मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी इससे जुड़े विवाद को ‘व्यर्थ का विवाद’ कह रहे हैं और व्यवसायी-संन्यासी रामदेव अनिवार्य रूप से इस नारे को लगाने के लिए कानून बनाने की सलाह दे रहे हैं.

भारत माता में भारत कहां है? उनकी संतानों ने उनकी रक्षा के लिए उसके ‘मैला आंचल’ को स्वच्छ करने के लिए क्या किया है? वे सिर्फ हिंदुओं की माता हैं या मुसलमान, सिख, ईसाई, जो भारतीय हैं, उनकी भी माता हैं? अंगरेजों से लड़ाई में सभी शामिल थे- दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुसलमानों, कंगालों, फटेहालों, बेरोजगारों, किसानों, मजदूरों, श्रमजीवियों के यहां वह भारत माता हैं या अंबानी-अडानी के यहां? दलितों में वे रामविलास पासवान और उदित राज के यहां हैं या मायावती के यहां? वे ‘देशभक्तों’ के यहां हैं या ‘देशद्रोहियों’ के यहां? वे जेएनयू में रह रही हैं या उन अनेक विश्वविद्यालयों में, जहां छात्र-छात्राएं शांत हैं? वे ईमानदारों के यहां हैं या भ्रष्टाचारियों के यहां? वे हत्यारों के साथ हैं या निर्दोषों के साथ? वे ‘ग्रामवासिनी’ हैं या ‘नगरवासिनी’? क्या वे मात्र नक्शे में हैं? भारत का नक्शा बार-बार बदला है.

महाराष्ट्र में विधायक वारिस पठान, जिसने ‘भारत माता की जय’ नहीं कहा था, क्या उनका शत्रु है? भारत माता एक विशेष राजनीतिक दल से जोड़ दी गयी हैं या सभी राजनीतिक दल उनके अपने हैं? क्या भारत माता ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ चाहती हैं? भारतीय संविधान में उनका कहीं जिक्र नहीं है. उनकी संतानें संविधान को मानें या उनकी जय-जयकार करनेवालों के साथ चलें. भारत माता की काल्पनिक छवि और वास्तविक छवि में अंतर है. वे नागपुर के साथ कानपुर में भी निवास करती हैं. भारत माता को ‘धर्मतंत्रात्मक हिंदू राज्य का संकेत शब्द’ (कोड वर्ड) बना दिया गया है. ‘राष्ट्रवाद’ के बाद अब ‘भारत माता’ को क्या एक हथियार के रूप में नहीं अपनाया जा रहा है? पूर्वोत्तर राज्यों और कश्मीर की संतानें क्या उनकी संतानें नहीं हैं?

राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में केवल ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के ही नारे नहीं लगते थे. आज जो भगत सिंह का नाम लेते हैं, उन्हें उन दो नारों को अवश्य गुंजाना चाहिए, जो भगत सिंह लगाते थे- ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’. अभी के ‘राष्ट्रपेमी’ ये नारे नहीं लगाते. नारों का अपने स्वार्थ में किया गया इस्तेमाल नारों के वास्तविक अर्थ को नष्ट करता है. चालाकी से लगाये गये नारे हमारी स्मृति से गौरवशाली कालखंड को नष्ट करते हैं, जिसे अपनी सांसों में उतार कर ही हम आगे बढ़ेंगे. किसी को भी किसी प्रकार का नारा लगाने को बाध्य नहीं किया जा सकता. भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की किसी भी कोशिश के पक्ष में भारत माता कभी नहीं हो सकतीं. भारतीय संविधान सबसे ऊपर है, जिसमें भारतीय जन सर्वोपरि है. भारत माता का ‘हिंदुत्व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल उनकी वास्तविक छवि के विरुद्ध है.

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

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Prabhat Khabar Digital Desk
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