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संगीता रिचर्डस को न्याय मिले

न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में उपवाणिज्य दूत देवयानी खोब्रागड़े के साथ वहां के प्रशासन के आचरण को लेकर पूरे भारत में खलबली मची है. देवयानी पर दो आरोप हैं- पहला, घरेलू कामगार को न्यूनतम वेतन नहीं देने का और दूसरा, उसके वीजा में गलत तथ्य डालने का. तर्क दिया जा रहा है कि 125 […]

न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में उपवाणिज्य दूत देवयानी खोब्रागड़े के साथ वहां के प्रशासन के आचरण को लेकर पूरे भारत में खलबली मची है. देवयानी पर दो आरोप हैं- पहला, घरेलू कामगार को न्यूनतम वेतन नहीं देने का और दूसरा, उसके वीजा में गलत तथ्य डालने का.

तर्क दिया जा रहा है कि 125 करोड़ की आबादीवाला देश अपनी राजनयिक के अपमान पर चुप रह जायेगा, तो पूरे देश के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचेगी. लेकिन सवाल उठता है कि जब हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीस को निर्वस्त्र कर उनकी तलाशी ली गयी थी या जिस समय हमारे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ कलाम की तलाशी अमेरिकन एयरवेज ने दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनके जूते उतरवा कर ली थी, उस समय तत्कालीन सरकारें क्यों सो रही थीं? इन दो हस्तियों की तुलना में देवयानी तो एक सामान्य-सी राजनयिक हैं.

इस मामले में अतिसक्रियता दिखा कर कांग्रेस कहीं आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपना राजनैतिक हित साधने की कोशिश तो नहीं कर रही है, यह विचारणीय है. यह सच है कि 1964 में दुनिया भर के देशों के बीच हुई वियना संधि राजनयिकों को विशेषाधिकार देती है.

लेकिन उस संधि में क्या शोषण और छल-कपट का भी विशेषाधिकार है? हमें सतर्क रहने की जरूरत है कि विशेषाधिकार प्राप्त कोई उच्च-पदस्थ व्यक्ति अपने अधिकारों की आड़ में अपने मातहतों के सामान्य अधिकारों का उल्लंघन करने का साहस नहीं करे. देवयानी की तरह उनकी घरेलू कामगार संगीता रिचर्डस भी भारत की नागरिक है, जिसे पूरे प्रकरण में लगभग भुला ही दिया गया है, जबकि संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है.

उषा किरण, खेलगांव, रांची

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