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अब कृत्रिम हृदय से बचेगा जीवन!

दुनिया को आविष्कारों ने बदला है. बनाया है. 1920 के दशक के अंत में पेनिसिलिन के आविष्कार के साथ ही इनसान ने रोगों से लड़ने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बढ़ाया था.तब से अब तक मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अनेक महान आविष्कार हुए हैं, जिन्होंने जीवन को ज्यादा सुरक्षित बनाया है. इन आविष्कारों […]

दुनिया को आविष्कारों ने बदला है. बनाया है. 1920 के दशक के अंत में पेनिसिलिन के आविष्कार के साथ ही इनसान ने रोगों से लड़ने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बढ़ाया था.तब से अब तक मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अनेक महान आविष्कार हुए हैं, जिन्होंने जीवन को ज्यादा सुरक्षित बनाया है. इन आविष्कारों की कड़ी में नया नाम जुड़ा है, कृत्रिम हृदय का. इस आविष्कार के बाद हृदय का धड़कना बंद होने के बाद भी जीवन को कृत्रिम हृदय की बदौलत महफूज रखा जा सकेगा.

फ्रांस में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के प्रयास से एक 75 वर्षीय मरीज के शरीर में कृत्रिम हृदय का सफल प्रत्यारोपण किया गया है. हालांकि, कृत्रिम हृदय का प्रयोग आपातकालीन मामलों में काफी लंबे अरसे से होता रहा है, लेकिन यह पहली बार है, जब वैज्ञानिकों ने जैविक सामग्रियों व सेंसरों के सहारे एक सक्षम कृत्रिम हृदय के निर्माण का दावा किया है. यह न सिर्फ मानव हृदय के समरूप है, बल्कि पांच वर्षो तक किसी इनसान के सीने में धड़क सकता है और उसे जीवित रख सकता है.

लिथियम आयन बैटरियों से चलनेवाला यह 900 ग्राम वजनी कृत्रिम हृदय दुनिया के लाखों हृदय रोगियों के लिए बड़ी खबर है. इस हृदय का निर्माण करनेवाली कंपनी के मुताबिक सिर्फ अमेरिका और यूरोप में इस आविष्कार से एक लाख से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचेगा. महिलाओं, भारतीयों तथा चीनी मूल के लोगों के शरीर के अनुकूल इस हृदय के निर्माण पर भी काम चल रहा है.

भारत में हृदय रोगियों की एक बड़ी संख्या है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के 60 फीसदी हृदयरोगी भारत में हैं. 2015 तक देश में प्रतिवर्ष 16 लाख हार्ट अटैक के मामले सामने आने की आशंका जतायी गयी है. ऐसे कई मामलों में तमाम कोशिशों के बावजूद जीवन को बचाना मुमकिन नहीं हो पाता.

ऐसे में यह आविष्कार भारत के लिए भी काफी अहमियत रखता है. हालांकि अपनी मौजूदा कीमत (करीब सवा लाख पौंड) में यह आम लोगों की पहुंच ही नहीं, सोच से भी बहुत दूर है. यह एक तथ्य है कि भारत में हृदय रोग से ज्यादातर मौतें सही समय पर और समुचित इलाज के अभाव में होती हैं. ऐसे में इस आविष्कार से भारत में हृदय रोगियों की दशा में तत्काल बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है.

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