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ओली की यात्रा से हासिल

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक सोमवार 22 फरवरी को नयी दिल्ली स्थित विश्व मामलों की भारतीय परिषद् (आइसीडब्ल्यूए) में तैनात सुरक्षाकर्मी, पूरी मुस्तैदी से कुछेक आगंतुकों के मोजे तक की तलाशी ले रहे थे. उनकी चिंता इस बात की थी कि कोई ऐसा व्यक्ति काला रूमाल, या काले झंडे के साथ उस सभागार […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
सोमवार 22 फरवरी को नयी दिल्ली स्थित विश्व मामलों की भारतीय परिषद् (आइसीडब्ल्यूए) में तैनात सुरक्षाकर्मी, पूरी मुस्तैदी से कुछेक आगंतुकों के मोजे तक की तलाशी ले रहे थे. उनकी चिंता इस बात की थी कि कोई ऐसा व्यक्ति काला रूमाल, या काले झंडे के साथ उस सभागार में न घुस जाये, जहां नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली संबोधित करनेवाले थे.
वहां ऐसा कुछ हुआ नहीं, लेकिन नेपाल दूतावास के आगे मधेस समर्थक कई सारे युवा काले झंडे के साथ नारे लगाते दिखे. काले झंडे ओली जी के हवाई अड्डे पर उतरने के बाद भी दिखाये गये थे. शिष्टमंडल में आये नेपाली पत्रकार और यहां का मेन स्ट्रीम मीडिया बहुत सारे कारणों से ऐसी सूचनाओं को सुर्खियां बनाना नहीं चाहता. इसकी एक वजह तो साफ है कि भारत-नेपाल का सत्ता केंद्र प्रधानमंत्री ओली की यात्रा को हर हाल में सफल बताना चाहता है. ‘आइसीडब्ल्यूए’ के मंच पर उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने नेपाल के लिए ‘हार्ड कोर हिंदू राष्ट्र’ जैसे शब्द का इस्तेमाल क्यों किया, इसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं. क्या थापा को राम माधव, ‘संघ’ और ‘विहिप’ से ऐसा कोई आश्वासन मिला है?
22 फरवरी का दिन ओली के लिए यादगार बनाने के संदर्भ में सुषमा स्वराज ने कहा कि मेरा भी जन्म 14 फरवरी, 1952 को हुआ है और मैं आपसे बारह दिन बड़ी हूं. इस नाते मैं बड़ी बहन हुई और भारत, नेपाल का ‘बड़ा भाई’ है. अंगरेजी वाला ‘बिग ब्रदर’ नहीं, जिसमें चौधराहट की बू आती है. सुषमा के सौहार्द्रपूर्ण वक्तव्य के बाद उनके समकक्ष कमल थापा और ओली ने भारत-नेपाल संबंध पर जो कहा, उसमें कहीं भी ‘छोटा भाई-बड़ा भाई’ की स्वीकारोक्ति नहीं थी.
लगता है कि नेपाली कूटनीति के शब्दकोश से ‘ठूलो दाई’ (बड़ा भाई) हटा दिया गया है, यह बात भारतीय विदेश मंत्रालय को समझना चाहिए.
ओली और कमल थापा, दोनों नेताओं ने दो टूक कहा कि नेपाल, भारत का रणनीतिक साझीदार बनना चाहता है, और ‘मित्र देश’ की हैसियत से बराबरी का इच्छुक है. ओली ने कहा जरूर कि नेपाल न तो चीन के पाले में जाना चाहता है, न ही भारत के पाले में. लेकिन, यदि वह इसका पालन करा दें, तो बड़ी बात है.
नेपाल के राष्ट्रवादियों का चीन कार्ड जरा-जरा सी बात पर बाहर आ जाता है. उनमें से कई सरकार में भी हैं. भूकंप से तबाह क्षेत्रों में 50 हजार मकान भारत के सहयोग से बनने हैं. इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू करने के लिए 25 करोड़ डाॅलर भेजने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. तराई में भारत के सहयोग से 518 किमी सड़क बननी है. ‘काकड़भिट्टा-बांग्लाबंध काॅरीडोर’ खुल जाने से बंाग्लादेश से व्यापार बढ़ेगा. तय यह भी हुआ कि नेपाल, भारत के साथ मिल कर सात हजार मेगावॉट जलविद्युत बनायेगा और घरेलू जरूरत के बाद बची बिजली भारत को बेचेगा.
लेकिन, लगता नहीं कि अगले पांच साल तक नेपाल ऐसा कर पायेगा. नेपाल पहले से ही 230 मेगावाॅट बिजली भारत से ले रहा था. मुजफ्फरपुर-ढलकेबार पारेषण लाइन से नेपाल को 80 मेगावाॅट बिजली मिलनी शुरू होगी, जो दिसंबर 2017 तक बढ़ते-बढ़ते 600 मेगावाॅट हो जायेगी.
नेपाल में निवेश के दरवाजे खुलने के बाद कितनी भारतीय कंपनियां वहां पैसे लगाती हैं, यह जिज्ञासा का विषय होगा.प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल की संघीय प्रणाली की अपने ढंग से व्याख्या करते हुए कहा कि नागरिकता जैसा विषय केंद्र के अधीन रहेगा. यह ‘ओली का संघवाद’ है, जिसके सहारे वह नेपाली नागरिकता को नियंत्रित करना चाहते हैं. भारत का संघवाद, राज्यों में ब्लाॅक के कर्मचारी तक को नागरिकों के सर्वे का अधिकार देता है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर नागरिकता पहचान पत्र मिलता है.
भारत में पासपोर्ट जारी करने जैसा विषय निश्चित रूप से केंद्र के पास है. कमल थापा ने ‘आइसीडब्ल्यूए’ के मंच पर स्वीकारकिया है कि वे मधेस को राज्यों में बांटे जाने और अधिक अधिकार देने के विरुद्ध रहे हैं. सीमांकन तय करने के वास्ते ओली ने जो दस सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति बनायी है, उसके अध्यक्ष कमल थापा हैं.
यह मांस की पोटली को गिद्ध के हवाले करने जैसा है, जिसे लेकर फिर से उत्पात का डर बना रहेगा. नेपाल में इस समय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद के साथ विदेश, वाणिज्य, गृह, प्रतिरक्षा, ऊर्जा, उद्योग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय जिस तरह पहाड़ी नेतृत्व के नियंत्रण में हैं, वह सरकार की नीयत पर शक का कारण बन गया है. यह दुनिया का अनोखा गणतंत्र है, जहां छह नेता उपप्रधानमंत्री हैं!

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