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बसंत में गांव के जीवन का संगीत
गिरींद्र नाथ झा किसान व ब्लॉगर पिछले हफ्ते गांव में हल्की बारिश हुई थी. बारिश हल्की ही थी, लेकिन आम-लीची-कटहल की बाड़ी ने इस बारिश का दिल खोल कर स्वागत किया था. दरअसल, इन पेड़ों के धूल से भरे पत्तों को धोने के लिए यह बारिश काफी थी. गांव के जीवन को जीते हुए लगता […]
गिरींद्र नाथ झा
किसान व ब्लॉगर
पिछले हफ्ते गांव में हल्की बारिश हुई थी. बारिश हल्की ही थी, लेकिन आम-लीची-कटहल की बाड़ी ने इस बारिश का दिल खोल कर स्वागत किया था. दरअसल, इन पेड़ों के धूल से भरे पत्तों को धोने के लिए यह बारिश काफी थी.
गांव के जीवन को जीते हुए लगता है कि हम-आप जिस काम को पूरा करने के लिए लंबी चौड़ी योजनाएं बनाते हैं, प्रकृति उसे बेहद सामान्य तरीके से चुटकी में कर देती है. देखिए न, पानी से भीगते ही आम के पल्लव चहक उठे हैं.
वहीं जिस पेड़ में मंजर आ चुका है, वह अब अपनी खुशी का इजहार तितलियों को अपनी पत्तियों के संग लिपटा कर कर रही है. कटहल के नये फल तो भीगने के बाद खिलौने की तरह दिखने लगी है. गाम-घर में कटहल के नये फल के बारे कहा जाता है कि ‘देखो न कटहल में मूंछ आ गया है ‘.
साल के बारह महीने मौसम के साथ जो किसानी का रिश्ता है, वह मुझे सिनेमाई स्क्रीन की तरह लगता है. कभी ब्लैक एंड व्हाॅइट तो कभी रंगीन. इसी का नतीजा होता है कि बारिश हुई, तो खेत का रंग मटमैला हो जाता है, धूप तेज हुई तो खेत लाल हो जाता है.
बसंत के महीने में तो गांव और भी हसीन हो जाते हैं. उधर, पछिया हवा भी अपना रंग दिखा रही है. गाम में अनुभवी लोग कह रहे हैं कि इस बारिश के पीछे इसी हवा का हाथ है. तेज हवा के संग धूल जब देह से टकराती है न, तो गुदगुदी का अहसास होता है.
बसंत की झलक आज दिखने लगी है. मानो झीनी-झीनी चदरिया से कोई हमें देख रहा हो. गाम में आज गाछ-वृक्ष की पत्तियां उड़ान भर रही है. सुंदर दिखते सरसों के खेत से एक अलग तरह की महक आ रही है. लीची की बाड़ी में इस बार मधुमक्खियों ने अपना घर बनाया है. पछिया हवा की वजह से मधुमक्खियां भी झुंड में इधर-उधर उड़ रही हैं.
पछिया हवा के कारण बांस बाड़ी मुझे सबसे शानदार दिख रहा है- एकदम रॉकस्टार! दरअसल, हवा के झोंकों में बांस रॉकस्टार की तरह लग रहा है. बांस की फुनगी और बांस के बीच के हिस्से को डोलते देख लगता है कि बॉलीवुड का कोई नायक मदमस्त होकर नाच रहा है. मक्का के खेत में तितलियों ने डेरा जमाया है.
मक्का के गुलाबी फूलों से इन तितलियों को मानो इश्क हो गया है. पीले रंग की तितली जब मक्का के नये फल के लिए गुलाबी बालों में उलझती है, तो लगता है कि प्रकृति में कितना कुछ नयापन है! इन्हीं गुलाबी बालों में मक्का का भुट्टा छुपा है.
पछिया हवा के झोंकों से खेत पथार भी देह की माफिक इठलाने लगा है. पटवन का काम हो चुका है. गाम-घर का जीवन मौसम की मार के गणित में यदि फंसता है, तो यकीन मानिए, इन्हीं मौसम की वजह से अन्न देनेवाली माटी सोना भी बनती है.
सबसे पुराना बरगद का पेड़ रंगरेज की तरह बसंत में झूम उठता है. कदंब के फल की मादक खुशबू के लिए मधुमक्खियों का झुंड इसके आसपास मंडराने लगा है.
वहीं गाछ-वृक्ष-फूल-तितली-जानवर आदि इन्हीं मौसमों में अपनी खुशबू से हमें रूबरू भी कराते हैं. यही वजह है कि इस हल्की बारिश में हम भी भीग कर गुनगुनाने लगे हैं- ‘पतझड़-सावन-बसंत-बहार…’ दूसरी ओर मन के भीतर कबीर की वाणी गूंजने लगी है- ‘कबीरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर…’
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