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ग्रामीण विकास से सशक्त होगा देश
हमारा देश गांवों का देश है और यह कहना कि गांवों के सर्वांगीण विकास से ही देश का संपूर्ण विकास संभव है, बिलकुल गलत नहीं होगा. यह हम सब जानते हैं, लेकिन फिर भी आज की तारीख में विकास के नाम पर सारी योजनाएं फिसड्डी साबित हो रही हैं. केंद्र और राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण […]
हमारा देश गांवों का देश है और यह कहना कि गांवों के सर्वांगीण विकास से ही देश का संपूर्ण विकास संभव है, बिलकुल गलत नहीं होगा. यह हम सब जानते हैं, लेकिन फिर भी आज की तारीख में विकास के नाम पर सारी योजनाएं फिसड्डी साबित हो रही हैं. केंद्र और राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के नाम पर आवंटित राशि बिचौलियों के ही बीच फंस कर रह जाती है.
बहुत सारे ग्रामीण परिवार ऐसे हैं, जिन्हें अपने अधिकारों और अपने लिए सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं की जानकारी नहीं है. और जिन्हें पता होता है, वे पैसे और सहायता के लिए बाबुओं के दफ्तर के चक्कर काटते-काटते सालों बिता देते हैं लेकिन सहायता नहीं मिलती. वो भी आखिरकार थक-हार कर बैठ जाते हैं.
ऐसी उम्मीद की जाती है कि अगर किसी एक व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले तो वह और लोगों को भी उस योजना की जानकारी देता है, लेकिन उस व्यक्ति की संघर्ष गाथा सुन-समझकर लोग खुद अपना मन बदल लेंगे कि हर रोज बाबुओं के दफ्तर के चक्कर काटने से बेहतर है कि वे अपनी वर्तमान दशा से संतोष कर लें, कोई परवाह नहीं. जिंदगी पहले की तरह कटे, कोई परवाह नहीं.
गांधीजी ने कहा था कि देश का संपूर्ण विकास तभी संभव है जब गांवों का विकास हो. क्योंकि देश की आधी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है. यानी देश का दिल गांवों में बसता है और अगर दिल ही कमजोर हो, तो शरीर कभी सही रूप से काम नहीं कर पायेगा.
हर कार्यालय में गांधीजी की तसवीर लगी होना और आदर्श लिखे दिखना आम बात है, लेकिन उनके आदर्शों को भी हमने उसी तरह सजा कर ताक पर रख दिया है, जैसे कि उनकी तसवीर. जिन गांवों की मेहनत से हमें रोटी नसीब होती है, उन्हीं के विकास में सरकारी कर्मी सेंध लगाते हैं. क्या यह सही है?
– मो अरशद अंसारी, चान्हो, रांची
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