इस वेलेंटाइन डे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया- ‘एक साल पहले आज ही के दिन दिल्ली को आम आदमी पार्टी से प्यार हुआ था.’ और अपनी शैली के अनुरूप ही उन्होंने दिल्ली के लिए 14 फरवरी के मायने बदल दिये. रविवार की छुट्टी के बावजूद उनकी कैबिनेट एक साथ बैठी और जनता से फोन पर संवाद कायम किया. मकसद था एक साल की उपलब्धियां बताना और सवालों के जवाब देना. और दिल्लीवासियों को वे इस एक साल के प्यार का रिटर्न गिफ्ट देना भी नहीं भूले. उन्होंने एलान किया कि नवंबर, 2015 तक के बकाया पानी बिलों पर रियायतें दी जायेंगी, पानी की बिलिंग से जुड़ी खामियां दूर होंगी और अगले 22 महीने में सभी अनधिकृत कॉलोनियों में पीने का पानी पहुंचा दिया जायेगा.
इससे पहले बीते एक हफ्ते से दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियों- आप, भाजपा और कांग्रेस की ओर से हर सड़क और चौक-चौराहों पर चस्पां किये गये पोस्टर व होर्डिंग बता रहे थे कि केजरीवाल सरकार का एक साल पूरा हो रहा है. और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस एक साल की उपलब्धियों व नाकामियों पर पक्ष-विपक्ष ने अपनी-अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुरूप ही नारे व तर्क गढ़े. सत्ता पक्ष ने जहां ‘एक साल बेमिसाल’ कहा, वहीं कांग्रेस ने ‘एक साल दिल्ली बेहाल’, तो भाजपा ने ‘एक साल केजरीवाल हर रोज नया बवाल’ का नारा दिया.
2014 के आम चुनाव में करारी हार के बाद, 10 फरवरी, 2015 को आये दिल्ली विधानसभा के नतीजों में 70 में से 67 सीटें जीत कर आप ने न केवल दिल्ली में इतिहास रचा था, बल्कि केजरीवाल नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकनेवाले राजनीतिक योद्धा बन कर उभरे. 14 फरवरी को ऐतिहासिक रामलीला मैदान में शपथग्रहण के बाद सस्ती बिजली-पानी जैसे वादों पर जल्द अमल कर उन्होंने संकेत दिया कि उनकी सरकार तेज दौड़ने के मूड में है. लेकिन, कुछ मंत्रियों-विधायकों के फर्जी डिग्री, रिश्वत मांगने सहित आपराधिक मामलों में फंसने के साथ सरकार की इस रफ्तार पर ब्रेक भी लगता रहा. सरकार की छवि पर उठते सवालों के बीच नये-नये बवाल भी सामने आते रहे. कभी नियुक्तियों पर विवाद, कभी एलजी से टकराव, तो कभी केंद्र को चुनौती से लोगों को लगने लगा कि केजरीवाल काम से ज्यादा बवाल में यकीन रखते हैं. साल के आखिरी दिनों में दिल्ली सचिवालय में सीबीआइ की छापेमारी के साथ यह टकराव चरम पर पहुंचता दिखा. सीबीआइ का कहना था कि वह प्रधान सचिव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है, तो केजरीवाल ने आरोप लगाया कि छापे के जरिये उन्हें निशाना बनाने और एक केंद्रीय मंत्री को बचाने की कोशिश की जा रही है.
टकराव जारी है. न दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे पर कोई बात बनी है, न ही पुलिस या नगर निगम पर आदेश चलाने को लेकर. कई मौकों पर तो लगता है कि आप और भाजपा, दोनों ही इस टकराव को जारी रखते हुए इसकी आड़ में अपनी-अपनी नाकामियां छिपाना चाहते हैं. सफाई कर्मियों की बार-बार की हड़ताल के बीच दिल्ली की जनता हफ्तों तक कूड़े के ढेर के साथ जीने के लिए अभ्यस्त हो रही है. दिल्ली सरकार दलील देती है कि उसने सैलरी का अपना हिस्सा दे दिया है, निगमों के अध्यक्ष उस पर झूठ बोलने की तोहमत मढ़ते रहते हैं.
हालांकि केंद्र के साथ टकराव के बीच केजरीवाल ने दिल्ली में प्रदूषण कम करने के मकसद से नये साल के पहले पंद्रह दिन ‘ऑड-ईवन फॉर्मूला’ लागू किया, जिसे देश-दुनिया में एक नये और सफल प्रयोग के तौर पर देखा गया. अब अप्रैल में इसकी पुनरावृत्ति होनी है. लेकिन, सरकार की उपलब्धियों की चमक उस पर उठते सवालों से फीकी पड़ती रही है. सवाल विज्ञापनों के लिए रखे 526 करोड़ के बजट पर भी उठे, तो विधायकों की सैलरी 400 फीसदी तक बढ़ाने पर भी. इस तरह ऐतिहासिक रामलीला मैदान में आम आदमी पार्टी के गठन के समय जिस वैकल्पिक राजनीति के सपने दिखाये गये थे, या फिर उसी मैदान से सत्ता की दूसरी पारी शुरू करते समय जिस भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली और गरीबों-बेरोजगारों की बेहतर जिंदगी के वादे किये गये थे, लोगों को उसका इंतजार अब भी है. उम्मीद करनी चाहिए कि अगले चार साल सरकार बवाल कम, काम ज्यादा करेगी.