यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार के तमाम उपायों के बावजूद हमारे एथलीट प्रतिबंधित दवाओं के सेवन से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं. यह जानकारी खेल-प्रेमियों को हताश करनेवाली है कि पिछले करीब पांच वर्षो में देश के करीब पांच सौ एथलीट डोप टेस्ट में फेल पाये गये हैं. नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) ने एक आरटीआइ याचिका के जवाब में बताया है, ‘नाडा जनवरी, 2009 में अस्तित्व में आया.
इसने जुलाई, 2013 तक करीब 500 खिलाड़ियों को एंटी डोपिंग नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया, जिसमें एंटी डोपिंग डिसिपिलिनरी पैनल (एडीडीपी) द्वारा 423 खिलाड़ियों को दंडित किया गया है. इसमें सबसे अधिक संख्या ट्रैक एंड फील्ड के एथलीटों की है, जबकि दूसरे स्थान पर वेटलिफ्टर हैं.’ कल्पना कीजिए, दुनिया के आठ बेहद प्रतिभाशाली धावक एक बड़े विश्व चैंपियनशिप में फिनिशिंग लाइन पर तैयार हैं, चंद सेकेंड्स में नये रिकॉर्डस बन सकते हैं, चंद कदमों के बाद कोई लाखों का मालिक बनेगा, स्टेडियम में मौजूद और टीवी सेट्स से चिपके लाखों दीवाने इस रोमांचक पल के लिए तैयार हो रहे हैं..
पर इसका दूसरा पहलू यह है कि इनमें किसी धावक की जेनेटिक बनावट ऐसी होगी कि वह डोप लेकर भी बच जायेगा, जबकि कोई डोपिंग की कोशिश में पकड़ा जायेगा.. यह स्थिति अब सिर्फ कल्पना नहीं है. हमने हाल के वर्षो में दुनिया के कई स्टार एथलीटों को पल भर में खलनायक बनते देखा है. जानकार बताते हैं कि एथलेटिक्स, खासकर पावर स्पोर्ट्स में वह दिन दूर नहीं, जब डोप के बिना मेडल जीतना नामुमकिन सा हो जायेगा. देखा यह जायेगा कि किसके पास बेहतर तकनीक है जो वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) के हाथों पकड़ा नहीं जाये या फिर किसकी शारीरिक बनावट ऐसी है, जो डोप करके भी बच निकले.
जाहिर है, पेशेवर स्पोर्ट्स में जबरदस्त पैसा और किसी भी कीमत पर जीतने की लालसा ने ओलिंपिक से लेकर नेशनल स्पोर्ट्स मीट तक को एक खतरनाक दोराहे पर ला खड़ा किया है. एक रास्ता मजबूत इच्छा-शक्ति के साथ इनसे लड़ने का है, जो खेलों की गरिमा को बचाये रखेगा, जबकि दूसरा इसे बढ़ावा देने का होगा, जो खेलों के रोमांच को लील रहा है. कौन सा रास्ता हम चुनें, यह हमें तय करना ही होगा.