राजधानी रांची स्थित झील में नौकायन के उद्घाटन के मौके पर ही चार लोगों की डूबने से मौत हो गयी. हादसे का कारण नाव पर क्षमता से ज्यादा लोगों का सवार होना और उनके पास लाइफ जैकेट का नहीं होना था. महिलाओं और बच्चों की तादाद ज्यादा थी जिन्हें तैरना नहीं आता था. राज्य के पर्यटन सचिव भी उस नाव पर सवार थे. बताया जाता है कि मना किये जाने के बावजूद वह खुद नाव चला रहे थे.
क्या इसे महज चूक कहा जा सकता है? यह हादसा आपराधिक कृत्य नहीं तो और क्या है? सवाल है कि क्या बगैर पूरी तैयारी के ही पार्क का उद्घाटन किया जा रहा था? बोटिंग के लिए एहतियाती उपाय क्यों नहीं किये गये थे? लाइफ गार्ड की तैनाती होनी चाहिए थी. लाइफ जैकेट व अन्य सुरक्षात्मक उपकरणों का पर्याप्त प्रबंध होना चाहिए था. यह तो संयोग है कि हादसे के समय झील में कई मछुआरे मौजूद थे, जिन्होंने तुरंत पानी में कूद कर कई लोगों को निकाला. अगर उस समय मछुआरे नहीं होते तो हादसे की भयावहता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
मुख्यमंत्री ने घटना की उच्चस्तरीय जांच की बात कही है, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में न डाल दिया जाये. नौकायन जैसी सुविधाएं राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी हैं, लेकिन इसके साथ ही सुरक्षा उपाय भी पुख्ता होने चाहिए. लोगों की जान जोखिम में डालने की इजाजत किसी सूरत में नहीं दी जानी चाहिए. राज्य में पर्यटन स्थलों पर पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराने को लेकर हाल ही में झारखंड हाइकोर्ट ने विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली और पैसा लैप्स होने को लेकर चिंता जतायी है.
कहा गया कि अधिकारियों के सुस्त रवैये की वजह से राज्य का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है. पर्यटन स्थलों के विकास में स्थानीय लोगों का सहयोग लिया जाना चाहिए. झारखंड में इससे पहले भी कई हादसे हो चुके हैं, लेकिन शायद पर्यटन विभाग ने इनसे कोई सीख नहीं ली है. रांची के दशम फॉल में तो न जाने की कितनों की जान जा चुकी है. इससे पूर्व देवघर में ग्लाइडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. घटना में किसी तरह पायलट की जान बची थी. हम लोग एहतियाती उपायों को पता नहीं कब गंभीरता से लेंगे?