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सारा दोष पश्चिमीकरण का नहीं

‘पश्चिमीकरण’ एक प्रचलित शब्द है. अक्सर हम इसका प्रयोग करते हैं. बात जब भारतीयों के नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों के पतन की होती है, तो अनायास ही मुख से एक कारक के रूप में ‘पश्चिमीकरण’ शब्द निकल जाता है, लेकिन क्या यह सही है? क्या देशवासियों में नैतिक पतन का एकमात्र कारक पश्चिमीकरण है? भारत […]

‘पश्चिमीकरण’ एक प्रचलित शब्द है. अक्सर हम इसका प्रयोग करते हैं. बात जब भारतीयों के नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों के पतन की होती है, तो अनायास ही मुख से एक कारक के रूप में ‘पश्चिमीकरण’ शब्द निकल जाता है, लेकिन क्या यह सही है? क्या देशवासियों में नैतिक पतन का एकमात्र कारक पश्चिमीकरण है?
भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है. सदियों से हमने संसार को सांस्कृतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाया है.‘विश्वगुरु’ के रूप में हमारी ख्याति दूर-दूर तक फैली है. बस दो सौ साल के अंग्रेजी राज के कारण हम अपनी संस्कृति व सभ्यता को छोड़ पश्चिमी देशों की निकृष्ट परंपराओं का अनुकरण करने लगे? देश में बढ़ते अपराध और दुष्कर्म जैसे कुकृत्यों में बढोतरी के लिए पश्चिमीकरण को ही दोष दिया जाता है, जबकि ऐसा नहीं है. देश में शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ोतरी, औद्योगिक विकास और नवागत तकनीकों का बढ़ता प्रयोग पश्चिमीकरण की ही देन है.
संयुक्त परिवारों का विखंडन औद्योगिक विकास का परिणाम है, यह पश्चिमीकरण नहीं है. यह न भूलें कि परंपरागत कुरीतियों से मुक्ति दिला कर जाति, धर्म व भाषा से उत्पन्न भेदभाव से रहित समाज पश्चिमीकरण का ही फल है. देश में आधुनिकीकरण के कारण लोगों की दिनचर्या में बदलाव आया है. उनकी प्राथमिकताएं और सोच भी बदली हैं.
अधिकांश सामाजिक समस्याएं अंधाधुंध आधुनिकीकरण की देन है. हम अाप सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर दिन-ब-दिन पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं. आश्चर्य इस बात का भी है कि यहां संभलने की बजाय सारा आरोप हम पश्चिमीकरण पर मढ़ रहे हैं अौर बदलाव के लिए कुछ नहीं कर रहे, यह गलत है. आज जरूरत संभलने की है.
-सुधीर कुमार, ई-मेल से
Prabhat Khabar Digital Desk
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