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सुरक्षा की पहल
बीते दो दशकों में वामपंथी अतिवाद से प्रभावित देश के 9 राज्यों में नक्सली हिंसा ने 12 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. मई 2014 में सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में देश के गृह मंत्रालय ने बताया था कि मारे गये कुल 12,183 लोगों […]
बीते दो दशकों में वामपंथी अतिवाद से प्रभावित देश के 9 राज्यों में नक्सली हिंसा ने 12 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. मई 2014 में सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में देश के गृह मंत्रालय ने बताया था कि मारे गये कुल 12,183 लोगों में से आम नागरिकों की संख्या 9,471 थी, जबकि केंद्रीय और राज्य के सुरक्षा बलों के शहीद जवानों की तादाद 2,712. बीसवीं सदी के आखिर के पांच सालों में हर साल नक्सली हिंसा में पांच सौ से ज्यादा लोगों की जान गयी, लेकिन 2000 से 2005 के बीच कोई भी वर्ष ऐसा नहीं रहा जब 600 से ज्यादा लोग नक्सली अतिवाद की भेंट न चढ़े हों.
2010 में तो मरनेवालों की तादाद 1,000 को पार कर गयी. देश में नक्सली हिंसा की भयावहता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इससे मरनेवालों की संख्या एक दशक के भीतर दोगुनी हो गयी है. यह स्थिति तब है, जबकि नक्सल प्रभावित 9 राज्यों में केंद्रीय सुरक्षा बल के 90 बटालियन यानी करीब 90 हजार सुरक्षाकर्मी और एक इंडियन रिजर्व नगा बटालियन (1 हजार सुरक्षाकर्मी) तैनात है. इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती भी नक्सली हिंसा पर प्रभावी ढंग से रोक नहीं लगा पा रही है.
इसी की एक मिसाल है बुधवार शाम झारखंड के पलामू में हुआ नक्सली हमला, जिसमें सात पुलिसकर्मी शहीद हो गये. जाहिर है, यह स्थिति कुछ विशेष सुरक्षा उपायों की मांग करती है. इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने सराहनीय पहल करते हुए 17 नयी रिजर्व बटालियन बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इनमें से 12 बटालियनें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र में तैनात होंगी. नक्सली हिंसा से बचाव की इस व्यवस्था से जहां केंद्रीय सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा, वहीं नयी बटालियन की जिम्मेवारी स्पष्ट होने के कारण उसे विशेष परिस्थितियों के अनुकूल विशिष्ट प्रशिक्षण भी दिया जा सकेगा.
इसके अलावा पांच नयी बटालियनों को जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद निरोधी गतिविधियों के लिए तैनात करने का प्रस्ताव है. जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष आतंकवाद निरोधी दस्ते की जरूरत भी लंबे समय से महसूस की जा रही थी. पाकिस्तान से लगती अपनी सीमा के कारण जम्मू-कश्मीर बीते दो दशकों में आतंकी घटनाओं के लिहाज से विशेष रूप से संवेदनशील रहा है.
िवशेष दस्ते के गठन से जहां जम्मू-कश्मीर में अमन पसंद नागरिकों की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी, वहीं नयी बटालियनों में स्थानीय युवकों की भर्ती करने की नीति के कारण स्थानीय समुदाय सुरक्षा बलों से अपने को अलग-थलग महसूस नहीं करेगा.
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