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संयमित फैसला
यह अकारण नहीं है कि भारत ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले पाकिस्तान को ठोस कार्रवाई के लिए कुछ और वक्त देने का फैसला किया है. दरअसल, पठानकोट हमले के बाद पहली बार पाक का रुख बदला-बदला सा दिखा है. उसने न केवल भारत के सबूतों को लेना गंवारा किया, बल्कि आतंकी संगठन […]
यह अकारण नहीं है कि भारत ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले पाकिस्तान को ठोस कार्रवाई के लिए कुछ और वक्त देने का फैसला किया है. दरअसल, पठानकोट हमले के बाद पहली बार पाक का रुख बदला-बदला सा दिखा है.
उसने न केवल भारत के सबूतों को लेना गंवारा किया, बल्कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के दफ्तरों में छापेमारी कर कई लोगों को गिरफ्तार भी किया. हालांकि, हमले के मास्टरमाइंड अजहर मसूद की गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं किये जाने के चलते यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि पाक ठोस कार्रवाई का इच्छुक है या सिर्फ दिखावे की कार्रवाई कर रहा है.
ऐसे में बातचीत को कुछ समय के लिए टालना भारत का संयमित फैसला माना जायेगा. ध्यान रहे कि भारतीय संसद पर हमले के बाद 2002 में भी मसूद को पाक में नजरबंद किया गया था, पर उसे सीधा आरोपी नहीं बनाया गया था. इससे कुछ ही समय बाद वह रिहा हो गया था. यह वही मसूद अजहर है, जिसे 1994 में कश्मीर में पकड़ा गया था, पर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान को 155 यात्रियों समेत कंधार में बंधक बना लिये जाने के बाद दो अन्य पाक आतंकियों के साथ रिहा करना पड़ा था.
हालांकि, दहशतगर्दों पर ठोस कार्रवाई के लिए मुखर अावाजें अब पाक बुद्धिजीवियों से भी उठ रही हैं. इस संदर्भ में वरिष्ठ पाक राजनयिक असरफ जहांगीर काजी के ताजा लेख की कुछ पंक्तियां काफी कुछ बयां करती हैं. काजी लिखते हैं- नाइजीरियाई उपन्यासकार एवं कवि बेन ओकरी की एक उक्ति है- ‘‘राजनीति जब जनता के सपनों से प्रेरित नहीं होती है, तब वह केवल चुनाव जीतने के मकसद से तैयार एक शुष्क एवं अनुत्पादक मशीन की तरह दिखती है.’’ यह उक्ति पाक में लोकतांत्रिक राजनीति का सार बयां करती है, जिसकी घरेलू व विदेश नीतियां कुछ शक्तियों से संचालित होती हैं, जनता के साझा सपनों से नहीं.
यदि पाक सरकार अपने लोगों के सपनों और हितों के मद्देनजर भारत के साथ संबंध निर्धारित करे, तो उसके पास कई गुना अधिक नीतिगत विकल्प मौजूद होंगे. लेकिन, यदि वह संभ्रांतवादी शक्तियों का संरक्षक बनी रही, तो कठोर और अनुत्पादक ही बनी रहेगी.
यदि अभी यह संदेश जायेगा कि पाक सरकार कश्मीर मुद्दा हल होने तक भारत-विरोधी जेहादियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर अनिच्छुक या असमर्थ है, तो इससे सरकार पाकिस्तान को उससे भी ज्यादा नुकसान पहुंचायेगी, जितना कभी इसके किसी दुश्मन ने सोचा होगा. उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार पाकिस्तान सरकार दोनों देशों के अमन पसंद लोगों की आकांक्षाओं को नजरंदाज नहीं करेगी.
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