नासिरुद्दीन
वरिष्ठ पत्रकार
बिहार के समस्तीपुर के रोसड़ा में दो हफ्ते पहले एक घटना हुई. शराब का लती मर्द शाम में घर पहुंचता है. पत्नी से और शराब के लिए पैसा मांगता है. पत्नी मना करती है. बच्चों की दुहाई देती है. मर्द को ना सुनना बर्दाश्त नहीं होता और वह पत्नी को पीटने लगता है. ऐसा वह पहली बार नहीं कर रहा था. लेकिन इस बार उसने हद कर दी. डंडे से पीट कर लहूलुहान कर दिया. जब पत्नी जख्मी होकर गिर गयी, तो उसने उसके पैरों को चीरने की कोशिश की. पत्नी ने वहीं दम तोड़ दिया.
इस घटना का रिश्ता शराब की लत से है… और यह कोई अकेली घटना हो, ऐसी भी बात नहीं है. बिहार-नेपाल सीमा के पास सिकटी में रहनेवाले एक मर्द ने बताया कि एक सुबह वे उठे, तो देखा कि उनकी पड़ोसी महिला अपने छोटे बच्चे के साथ उनके घर के एक कोने में दुबकी है.
सूजी आंखें उसकी तकलीफ बयान कर रही थीं. हुआ यों कि हर रोज की तरह, उसका पति रात में नशे में धुत घर पहुंचा. उसने पत्नी की पिटाई शुरू कर दी. वह महिला किसी तरह बच कर भागी और जान बचाने के लिए उनके यहां छिप गयी. बिहार के सीमांचल इलाके में घूमते हुए शराब के लती मर्दों के किस्से, उनके हाथ से पिटती महिलाओं की कहानी बाकी शहरों और राज्यों की तरह ही आम मिलती है. शराब की लत की यह बीमारी समाज के हर वर्ग के लोगों में देखी जा सकती है.
शराब पीना न पीना, व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला है. लेकिन, व्यक्तिगत पसंद-नापसंद, जब दूसरों की जिंदगी में दखल देने लगती है, तो वह चिंताजनक है. शराब का सुरूर या मस्ती की खुमारी जब लत में तब्दील हो जाती है, तो वह दूसरों की जिंदगियों पर असर डालने लगती है. इसका सबसे खतरनाक लक्षण है- हिंसा. इस लती हिंसा को सबसे ज्यादा पत्नियां झेलती हैं. गाली-गलौज के रूप में मन की हिंसा, मार-पीट की शक्ल में शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा आदि. और कई बार जब शरीर की सहने की ताकत खत्म हो जाती है, तो समस्तीपुर जैसी मौत भी हिस्से आती है.
महिला और पुरुषों से बात करते हुए इस हिंसा के अलावा भी कई बातें सामने आती हैं. जैसे- नशे के आदी घर के अलावा बाहर की महिलाओं को भी परेशान करते हैं. वे अपने बच्चों के साथ भी इसी तरह हिंसा करते हैं. कई बच्चे-बच्चियों के स्कूल छूट गये हैं. कई चोरी या दूसरी अापराधिक गतिविधियों में लग जाते हैं. इन सबके बीच वे अपना सबकुछ खोते जाते हैं. सबसे बढ़ कर, अपनी इज्जत खोते हैं. अपने घर में भी शर्मिंदगी की वजह बन जाते हैं. आर्थिक स्थिति चरमरा जाती है.
इन सबके असर को सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. समाज महिलाओं से जिस तरह की पति-भक्त पत्नी होने की मांग करता है, उसमें उनके लिए पति के प्रतिरोध की गुंजाइश भी नहीं रहती. लेकिन, जब बात हद से गुजर जाती है, तब वे आवाज भी उठाती हैं. इसीलिए शराब-बंदी के खिलाफ सबसे पुरजोर आवाज महिलाएं ही उठा रही हैं. क्या हमने कभी सोचा कि आखिर मर्द इसके खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं करते? किसी शराब की दुकान का घेराव वे क्यों नहीं करते?
जब तक मर्द अपनी जिम्मेवारी नहीं समझते हैं, लत से मुक्त नहीं होते, तब तक हिंसा से लड़ने का एक सीमित रास्ता शराब-बंदी ही है.