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बुजुर्गों को सम्मान देने का लें संकल्प
नये साल का आगमन हो गया है. इस साल से सबकी उम्मीदें बंधी हैं. ऐसे में, नये साल के अवसर पर देश के बुजुर्गों को भी युवा पीढ़ी से काफी सारी उम्मीदें हैं. उन्हें इस बात की आस है कि देश के युवा बुजुर्गों को सम्मान देने का संकल्प लेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि […]
नये साल का आगमन हो गया है. इस साल से सबकी उम्मीदें बंधी हैं. ऐसे में, नये साल के अवसर पर देश के बुजुर्गों को भी युवा पीढ़ी से काफी सारी उम्मीदें हैं. उन्हें इस बात की आस है कि देश के युवा बुजुर्गों को सम्मान देने का संकल्प लेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि देश में बुजुर्गों की स्थिति बेहतर नहीं है. इसके साथ ही बुजुर्गों ने युवाओं से पश्चिमी सभ्यता की अधकचरा संस्कृति त्याग कर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को अपनाने का भी अाह्वान किया है.
दुनिया के महान दार्शनिक सुकरात के अनुसार, सम्मान पाने के लिए दूसरों को सम्मान देना जरूरी है. बुजुर्गों का कहना है कि भारत की अपनी सभ्यता-संस्कृति है. दुनिया के किसी भी देश के नागरिक अपने यहां की सभ्यता-संस्कृति को त्याग कर अन्य देश की सभ्यता संस्कृति को नहीं अपनाते. फिर भारत के युवा ही पाश्चात्य सभ्यता के पीछे क्यों भाग रहे हैं.
भारत की सभ्यता दूसरे देशों की सभ्यता एवं संस्कृति से काफी उन्नत है. यह बात भले ही युवाओं को अभी समझ में नहीं आ रही हो, लेकिन वय ढलने और जीवन का अनुभव मिलने के साथ ही इसके अस्तित्व और अस्मिता का पता चलता है.
‘मातृ देवो भव’ का सनातन सिद्धांत भारतीय संस्कृति का हिस्सा है. यह सिद्धांत पूरे समाज को आपस में मिलाये रखता है.यह तो महज एक उदाहरण भर है. इस प्रकार के न जाने कितने ऐसे सामाजिक सिद्धांत हैं, जो लोगों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं. वहीं, जब हम पाश्चात्य सभ्यता की ओर रुख करते हैं, तो वह समाज और परिवार को जोड़ने का काम करने के बजाय परिवार को तोड़ने का काम करती है. एकल परिवार के सिद्धांत पूरा सामाजिक ताना-बना ही तहस-नहस हो जाता है.
– परमेश्वर झा, दुमका
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