डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
हम भारतवासी परंपरा से ही बहुत संकल्पवान हैं. जब जी किया और जब जी नहीं किया तब भी, संकल्प ले लेते हैं और लेते ही रहते हैं. हम इतने संकल्प के साथ संकल्प लेते हैं कि संकल्प भी हमसे घबराते हैं. नये साल पर तो खासतौर से संकल्प लेते हैं. नये साल को भी आदत पड़ गयी है इसकी. हमारे संकल्प ले लेने के बाद ही वह कदम आगे बढ़ाता है, हंसते हुए.
संकल्प लेने के प्रति इतनी घनघोर निष्ठा है कि हम संकल्प लेने का तो पूरा ध्यान रखते ही हैं, उन्हें पूरा न करने का भी उतना ही ध्यान रखते हैं. संकल्प पूरे न करने के पीछे हमारी धारणा है कि अगर संकल्प लेकर उन्हें पूरे भी कर दें, तो दो-चार साल में ही संकल्पों का अकाल पड़ जायेगा. फिर अगले सालों में क्या करेंगे?
संकल्प तुड़वाकर हमें संकल्पवान बनाये रखने में अड़ोसी-पड़ोसी भी योगदान करते हैं. मुंबई में रहते हुए नये साल पर मैंने वजन कम करने का संकल्प लिया और इसके लिए सातवीं मंजिल पर बने अपने फ्लैट से लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों से चढ़ना-उतरना तय किया.
लेकिन, लोगों को यह नागवार गुजरा. पहले तो लिफ्टमैन को ही बेइज्जती महसूस हुई कि उसके रहते साहब लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों से चढ़ें-उतरें.
उसे समझाया तो बिल्डिंग के गार्ड ने बुरा माना. उसे टाला तो वेल्फेयर एसोसिएशन के एकमेव सेक्रेटरी को अफसोस हुआ और लिफ्ट के सप्लायर को ही बुला लिया कि देखो-लिफ्ट में तो कोई खराबी नहीं, जो साहब लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं कर रहे. अफवाहें उड़ने लगीं कि साहब लिफ्ट में चढ़ने से घबराते हैं. बच्चे तक मुझे अजीब निगाहों से घूरने लगे कि देखो, वो जा रहा है लिफ्ट से डरने वाला. अंतत: मुझे यह संकल्प छोड़ना पड़ा.
एक नववर्ष पर मैंने कार से न चलने का फैसला किया. बैंक की ओर से कार और ड्राइवर मिला हुआ था.
घर से दफ्तर एक-डेढ़ किलोमीटर दूर ही था, लेकिन लोगों ने मुझे इतना भी पैदल नहीं चलने दिया. ड्राइवर लिफ्ट के पास ही कार लगा देता. जब वह नहीं ही माना, तो ब्रीफकेस उसी तरह से कार में ले जाने के लिए दे दिया, जैसे पुराने जमाने में क्षत्रिय लोग युद्ध में व्यस्त होने पर शादी में खुद न आकर तलवार वगैरह ही फेरे लेने के लिए भिजवा देते थे. फिर पनवाड़ी ने टोका कि साहब-आज कार खराब हो गयी क्या? मैंने बताया कि दुनिया का तापमान बहुत बढ़ गया है, जिसे कम करने में योगदान देने के लिए ही पैदल चल रहा हूं.
सर्दी से कांपते हुए कहा कि तापमान बढ़ गया या कम हो गया. मुझे कुछ ‘खिसकेला’ (जिसका दिमाग खिसक गया हो) समझ घूरने लगा. उससे पीछा छुड़ाया, तो सहकर्मी लिफ्ट देने की पेशकश करने लगे. एक ने तो मुझे उसी तरह जबरन कार में खींच लिया, जिस तरह पुलिस की नाक-आंख के नीचे से गुंडे एक लड़की को खींच ले गये थे. अंतत: संकल्प भी मुझे जल्दी ही त्यागना पड़ गया.नववर्ष पर लिये गये अपने सभी संकल्पों को हर बार धराशायी होते देख मैंने इस वर्ष यह संकल्प लिया है कि कोई संकल्प नहीं लूंगा.