भारत रत्न सचिन रमेश तेंडुलकर भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम है, जिसे सदियों तक लोग पढ़ेंगे और याद रखेंगे. इतिहास के पन्नों में और भी कई नाम हैं, जो धीरे-धीरे धूल की परतों में दबते चले गये. यह अलग बात है कि राजनीति में अपनी जरूरतों के मुताबिक एक नेता ने इतिहास के पन्नों को झाड़ा-पोंछा और जुट गये सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने में.
भारत रत्न सचिन तेंडुलकर मौजूदा और पुरानी पीढ़ी के लिए कौतूहल हों या न हों, पर आनेवाली पीढ़ी के लिए एक आदर्श अवश्य होंगे. सचिन की आड़ में भारत रत्न की राजनीति तो शुरू हो ही गयी है. और ऐसे में ‘उनको’, ‘इनको’ और सबको भारत रत्न देने की मांगें उठने लगीं हैं.
कूटनीति में खुशी-नाखुशी के इजहार का अंदाज अलग है, मगर अभी कई और जुबानें खुलनी बाकी हैं. किसी ने कहा सचिन ‘पेड’ खिलाड़ी थे. सच तो यह है कि आजादी के बाद देश में अवैतनिक सेवा देने वाला कोई नहीं. देश के राष्ट्रपति भी अपवाद नही हैं. सस्ते गल्लेवाला आम आदमी भी गर्दन उछाल कर जानना चाह रहा है कि सचिन को क्या ऐसा मिल गया है जो किसी को मौत के वर्षो बाद तो किसी को आधी उम्र बीत जाने के बाद मिलता है?
बहुत से लोग न तो जानते हैं और न ही जानने की चाह रखते हैं. मगर इतना जरूर जानते हैं कि ‘भारत रत्न’ टेलीविजन पर अंडे और वाटर प्यूरीफायर जैसे प्रोडक्ट बेचता है तो वह देश के 125 करोड़ लोगों को अपमानित करता है.
अच्छे तो पुरखे ही हैं जिनको यह सम्मान मौत के बाद मिला है और जिनके सम्मान में हमारा सिर तो झुक ही जाता है. लेकिन बेहतर यही होगा कि हम सब इस बात को ज्यादा तूल न दें कि सचिन को भारत रत्न मिले या न मिले, बल्कि इस ‘सम्मान’ का सम्मान करें.
एमके मिश्र, रांची