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बिगड़ता बचपन, भटकता राष्ट्र

जुवेनाइल जस्टिस बिल संसद से पास हो गया. इस अधिनियम में काफी विसंगति है. केवल उम्र घटा देने से क्या बाल अपराध पर अंकुश लगेगा? अपराध में कमी आयेगी? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, किशोरों द्वारा किये जा रहे अपराध में लगातार इजाफा हो रहा है. वर्ष 2014 में दर्ज दुष्कर्म […]

जुवेनाइल जस्टिस बिल संसद से पास हो गया. इस अधिनियम में काफी विसंगति है. केवल उम्र घटा देने से क्या बाल अपराध पर अंकुश लगेगा? अपराध में कमी आयेगी? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, किशोरों द्वारा किये जा रहे अपराध में लगातार इजाफा हो रहा है. वर्ष 2014 में दर्ज दुष्कर्म के 2144 मामलों में से 1488 में दुष्कर्मियों की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच थी.
सिर्फ भारत में किशोरों को जघन्य अपराध करने के बावजूद गंभीर सजा नहीं मिल पाती. अमेरिका के कई राज्यों में संगीन अपराध करने पर 13 से 15 साल के किशोरों को भी गंभीर सजा दी जाती है. कुछ राज्यों में यह उम्र सीमा महज 10 वर्ष है. बच्चों और किशोरों को भी उम्र कैद तक की सजा दी जाती है.
इंग्लैंड में 18 वर्ष, चीन में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों का अपराध साबित होने पर उन्हें आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है. फ्रांस में नाबालिग की उम्र 16 साल है. सऊदी अरब में बच्चों व किशोर अपराधियों को सजा देने में कोई रियायत नहीं बरती जाती. पुलिस की नकारात्मक छवि से दुष्कर्म पीड़िता थाने जाने से परहेज करती हैं.
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च के अनुसार, देश में दुष्कर्म के करीब 40,000 मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं. किशोराें में बढ़ते अपराध का कारण अवांछित पड़ोस-समाज, स्कूल का अविवेकपूर्ण वातावरण, टीवी, सिनेमा भी है. इनके कारण बच्चों की मानसिक स्थिति अपराध की ओर मुड़ जाती है.
मनोवैज्ञानिकों ने भी असुरक्षा, भय, अकेलापन, भावनात्मक द्वंद्व, निम्न जीवन स्तर, पारिवारिक अलगाव, पढ़ाई के बढ़ते बोझ को माना है कि ये सब अपराध की ओर बच्चों को उन्मुख करते हैं. बाल अपराध की वर्तमान स्थिति को देख कर लगता है कि भावी पीढ़ी की दशा और दिशा किधर है.
-सतीश के सिंह, रांची

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