बिहार क्लीनिकल इस्टैबलिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2010 को अब सरकार लागू करने जा रही है. पिछले दो सालों से इसे लेकर चल रही माथापच्ची, एक्ट से जुड़ी नियमावली को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के साथ खत्म हो गयी है. इसके दायरे में एलोपैथ, होम्योपैथ व आयुव्रेद में इलाज करनेवाले सभी संस्थान व डॉक्टर आयेंगे.
कानून में इस बात का प्रावधान है कि अब बिना रजिस्ट्रेशन करवाये किसी तरह की स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दी जा सकेंगी. अगर कोई ऐसा कर रहा है उस पर दो लाख तक का जुर्माना किया जायेगा. इसकी निगरानी के लिए हर जिले में परिषद रहेगी. यह सरकार की ओर से देर से उठाया गया सही कदम है. स्वास्थ्य हर व्यक्ति और परिवार से जुड़ा हुआ मामला है. प्रदेश में अभी सैकड़ों नहीं, हजारों की संख्या में ऐसे नर्सिग होम खुले हुये हैं, जिनका कोई लेखा-जोखा सरकार के पास नहीं है. गली-कूचों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों व शहरों में निजी नर्सिग होम हैं.
इनमें बैठनेवाले डॉक्टरों व अन्य कर्मचारियों की योग्यता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. निजी नर्सिग होम व क्लीनिकों में मरीजों के साथ होनेवाले व्यवहार को लेकर भी लगातार शिकायतें आती रही हैं. किसी तरह की घटना-दुर्घटना होने पर रातोरात नर्सिग होम व क्लीनिकों का बोर्ड बदल दिया जाता है. वहां काम करनेवाले डॉक्टर व कर्मचारी गायब हो जाते हैं. इसके अलावा एक बड़ी समस्या किसी हादसे में घायलों के प्राथमिक इलाज को लेकर भी रही है. बड़ी संख्या में ऐसे निजी क्लीनिक व नर्सिग होम हैं, जहां ऐसे लोगों का प्राथमिक इलाज करने से मना कर दिया जाता है, लेकिन नया कानून लागू होने के बाद ऐसा नहीं किया जा सकेगा.
अब सभी को ऐसे लोगों का इलाज करना ही होगा. ऐसा नहीं करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई होगी. इस कानून को लागू कराने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ उन सभी लोगों की बनती है, जो स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े हैं. क्योंकि जब तक यह नहीं होगा, तब तक सही मायने में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं लाया जा सकेगा, जिसकी बात हम बेहतर समाज बनाने के लिए करते हैं. यह जिम्मेदारी हर उस व्यक्ति पर भी है, जो बिहार को बेहतर बिहार बनाने की बात करता है.