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बड़े धोखे हैं इसलामाबाद की राह में!
पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक भारत-पाक के बीच ‘समग्र बातचीत’ का मतलब क्या है? पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान ऐसी कोई बातचीत नहीं चाहता, जो कश्मीर के बगैर हो. मंगलवार को ऐसा ही आश्वासन नयी दिल्ली स्थित पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित, हुर्रियत प्रतिनिधियों को दे चुके हैं. पीर सैफुल्लाह और अल्ताफ अहमद शाह, हुर्रियत नेता […]
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के
नयी दिल्ली संपादक
भारत-पाक के बीच ‘समग्र बातचीत’ का मतलब क्या है? पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान ऐसी कोई बातचीत नहीं चाहता, जो कश्मीर के बगैर हो. मंगलवार को ऐसा ही आश्वासन नयी दिल्ली स्थित पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित, हुर्रियत प्रतिनिधियों को दे चुके हैं. पीर सैफुल्लाह और अल्ताफ अहमद शाह, हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का संदेश लेकर पाक उच्चायोग आये थे.
कोई डेढ़ घंटे की बातचीत में सरकार पर दबाव कैसे बनाये रखना है, इसकी रणनीति तय करने के बाद, दोनों प्रतिनिधियों को इसका भरोसा मिला है कि पाकिस्तान किसी भी कीमत पर कश्मीर मसले को बीच रास्ते नहीं छोड़ेगा. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जब इसलामाबाद में थीं, तब भी पाक विदेश मंत्रालय ने ‘कंप्रहेंसिव डायलाग’ (समग्र बातचीत) का मतलब समझाया था.
उसके अनुसार, ‘दोनों देशों के विदेश सचिव शांति-सुरक्षा, जम्मू-कश्मीर, सियाचीन, सरक्रीक, वुल्लर बैराज, तुलबुल नेवीगेशन प्रोजेक्ट, आर्थिक व व्यापारिक सहयोग, आतंक से मुकाबला, नशा निरोध, मानवतावादी मुद्दों, दोनों मुल्कों के अवाम के बीच संपर्क और धार्मिक पर्यटन पर बात करेंगे.’
सुषमा स्वराज ने संसद में क्या कहा, उससे पहले एक और घटना की चर्चा जरूरी है. गुजरे 14 दिसंबर को जेकेएलएफ नेता यासीन मलिक को इसलामाबाद में मानवाधिकार पुरस्कार दिया गया है.
उन्हें कश्मीर में आजादी आंदोलन का चैंपियन और महान मानवाधिकारवादी घोषित किया गया है. पाक स्थित ‘इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स आॅर्गेनाइजेशन’ द्वारा आयोजित इस समारोह में यासीन मलिक की ओर से यह पुरस्कार लेने उनकी बच्ची रजिया सुल्ताना अपनी मां मुशाल हुसैन मलिक के साथ आयी थीं. यह अवाॅर्ड पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी ने दिया.
यासीन मलिक और मुशाल की शादी 2009 में हुई थी. मुशाल की मां पाकिस्तान मुस्लिम लीग की नेता हैं. मुशाल की पहचान निर्वस्त्र औरतों की पेंटिंग बनाने के कारण बनी है, जिससे वे तालिबान के निशाने पर हैं.
यासीन मलिक उस समय श्रीनगर में 30 घंटे की भूख हड़ताल पर बैठे थे, जब उनकी ओर से मानवाधिकार पुरस्कार उनकी बेटी और बीवी इसलामाबाद में ले रही थीं. इन दो घटनाओं से संदेश यही जा रहा है कि पाकिस्तान का एजेंडा कश्मीर से शुरू, और कश्मीर पर समाप्त होता है.
लेकिन संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह से ‘हार्ट आॅफ एशिया’ बैठक से लौटने के बाद बयान दिया है, उससे यही अर्थ निकलता है, गोया विदेश सचिव स्तर की नयी बातचीत में आतंकवाद सबसे प्रमुख एजेंडा रहेगा, और मुंबई हमले पर जो कानूनी प्रक्रियाएं चल रही हैं, पाकिस्तान उसमें तेजी लायेगा. क्या हम एक बार फिर खुद को धाेखा देने जा रहे हैं?
मुंबई हमले का गुनाहगार यदि दाऊद इब्राहिम है, तो उसे सौंपने के बारे में क्या बातें हुईं, इसे संसद के दोनों सदनों को क्यों नहीं बताया गया? कश्मीर और मुंबई हमले के कारण क्रिकेट से लेकर गुलाम अली के संगीत तक जो कड़वाहट बढ़ी है, क्या उसे अब्दुल बासित जैसे कूटनीतिक और शिवसेना के लोग कम होने देंगे?
अब्दुल बासित दरअसल ‘मिशन कश्मीर’ के कारण ही नयी दिल्लीमें नियुक्त किये गये हैं. बासित ने भारत-पाक कूटनीति का सबसे अधिक कूड़ा किया है, इस सच से पता नहीं हम क्यों मुंह फेर रहे हैं.
बासित जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत रहते ‘कश्मीर डे’ कैसे मनाते थे, यूट्यूब देखिए तो उससे उनकी नीयत का पता चलता है. उन्होंने दिल्ली आकर सबसे अधिक हुर्रियत का दुरुपयोग ‘मिशन कश्मीर’ के लिए किया है. थर्ड पार्टी के नाम पर हुर्रियत नेताओं से पाक नेता और कूटनीतिक जिस तरह बगलगीर रहे, और विदेश सचिव स्तर की दो वार्ताएं फेल रहीं, क्या उसके प्रमुख कारण उच्चायुक्त अब्दुल बासित नहीं रहे हैं?
कई कारणों में बासित भी एक वजह थे, जिससे बैंकाॅक को बातचीत का ठिकाना बनाया गया. इससे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के उस संकल्प का मखौल उड़ा, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी तीसरे देश में जाकर भारत-पाक के विदेश सचिव बात नहीं करेंगे.
हालांकि, पेरिस और बैंकाक में जो भी दो कदम आगे बढ़ने की कोशिश हुई, उसे लेकर इमरान खान जैसे नेता ने आपत्ति उठायी है कि पाक संसद ‘नेशनल असेंबली’ को भरोसे में क्यों नहीं लिया गया? ऐसा तो भारत में भी नहीं हुआ. भारतीय प्रतिपक्ष के किसी नेता ने स्वीकार नहीं किया कि पेरिस से ‘तापी’ भूमि भंजन तक जो भी प्रयास हो रहे हैं, उसके लिए उनसे पूछा जा रहा है.
तापी परियोजना के लिए तुर्कमेनिस्तान के मेरी में 13 दिसंबर को ‘भूमि भंजन समारोह’ में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को भेजा गया. इस समारोह में तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरुबांगुली बोर्डिमोहमेदोव, अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी, और पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उपस्थित थे.
तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (तापी) परियोजना के वास्ते 1995 में हस्ताक्षर हुआ था, लेकिन आतंकवादियों की अड़चनों के कारण यह परियोजना लटकी रही. 1800 किमी लंबी और 56 इंच डायमीटर वाली तापी गैस पाइपलाइन पर 10 अरब डाॅलर खर्च होना था. इससे पाकिस्तान को रोजाना 1.3 अरब घनफीट गैस मिलेगी, और इतनी ही गैस भारत को मिलनी है.
अफगानिस्तान को 0.5 क्यूबिक फीट गैस मिलेगी. इसके बदले भारत को 200 से 250 मिलियन डाॅलर ट्रांजिट फीस पाकिस्तान को देनी होगी, और यही राशि पाकिस्तान, अफगानिस्तान के हवाले कर देगा. यानी पाकिस्तान को ट्रांजिट फीस नहीं देनी होगी. फिर भी भारत तापी के लिए तैयार बैठा है.
पाकिस्तान का लक्ष्य तापी के जरिये दिसंबर 2019 तक गैस प्राप्त कर लेना है. तापी पाइपलाइन अफगानिस्तान के हेरात, हेलमंड, कंधहार और पाकिस्तान के क्वेटा, मुल्तान से गुजरते हुए भारत के फजिल्का में पहुंचेगी. ‘तापी’ गैस परियोजना साकार होती है, तो बंगाल की खाड़ी से लेकर कैस्पियन सागर के इलाके आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो सकेंगे.
पाकिस्तान की लीडरशिप भी चाहेगी कि तापी पाइपलाइन सुरक्षित भारत पहुंचे. नवाज शरीफ और मोदी सरकार के लिए सफलता की सबसे बड़ी मिसाल ‘तापी’ बन सकती है. लेकिन पाकिस्तान की सेना, उसकी खुफिया, और भारत से अच्छे संबंध की राह में रोड़ा बने कठोरपंथी क्या ऐसा चाहेंगे?
नवाज शरीफ 15 दिसंबर को शांघाई कॉरपोरेशन आॅर्गेनाइजेशन की बैठक में चीन से इसका अहद कर रहे थे कि ‘ग्वादर सिक्योरिटी टास्क फोर्स’ बलूचिस्तान में चीनी परियोजनाओं की सुरक्षा करेगा. काश, कश्मीर से कच्छ तक ऐसी ही सुरक्षा की बात होती!
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