केंद्र सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) की अधिसूचना जारी कर दी है. इसके साथ ही एक न्यायिक समिति भी गठित की गयी है, जिसके समक्ष इससे संबंधित कोई भी मुद्दा उठाया जा सकता है. लेकिन, इस अधिसूचना से बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक संतुष्ट नहीं हैं और उनका विरोध अब भी जारी है.
सरकार दावा कर सकती है कि उसने न सिर्फ अपना चुनावी वादा पूरा किया है, बल्कि एक काफी समय से लंबित मुद्दे को सुलझाने की कोशिश भी की है, लेकिन इतने दिनों तक सरकार के टालमटोल वाले रवैये और अधिसूचना में सभी पूर्व सैनिकों को लाभ न मिलने के चलते पूर्व सैनिकों की नाराजगी भी स्वाभाविक है. सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच संवादहीनता की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व सैनिकों को अपने वीरता पदक लौटाने जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है.
हजारों पूर्व सैनिक अपने मेडल वापस कर चुके हैं. इनमें बड़ी संख्या बुजुर्गों की है, जिन्होंने अपनी युवावस्था के दिन देश की सरहदों की हिफाजत में बिताये हैं. इनमें अनेक सैनिक ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने कर्तव्य पूरा करने में अंग तक गंवाने पड़े हैं. उन्हें समझाने-बुझाने की जगह रक्षा मंत्री द्वारा उनके रवैये को ‘सैनिकों की गरिमा के प्रतिकूल’ कहना उचित नहीं माना जा सकता. सत्ताधारी पार्टी और सरकार ने उन्हें समय-समय पर वन रैंक वन पेंशन लागू करने का आश्वासन दिया था.
सितंबर महीने में सरकार और पूर्व सैनिकों के बीच बातचीत के बाद एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पेंशन पर हक सभी पूर्व सैनिकों को होगा. लेकिन, इसके दायरे से स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होनेवाले सैनिकों को निकाल दिया गया है.
सरकारी अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि पुराने पेंशनरों की पेंशन 2013 में सेवानिवृत्त हुए लोगों की पेंशन के हिसाब से तय होगी और यह लाभ उन्हें 2014 के जुलाई माह से मिलेगा. पेंशन को हर पांच साल में बदलने की बात कही गयी है. समिति के गठन और पेंशन के पैमाने को लेकर भी पूर्व सैनिक संतुष्ट नहीं हैं.
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सरकार प्रदर्शनकारी पूर्व सैनिकों से खुले मन से बातचीत कर उनके सामने अपना पक्ष रखे और उनके पक्ष को समझते हुए उन्हें समझाने-बुझाने की हर मुमकिन कोशिश करे. वादा करने के बाद सरकार के ढीलेपन ने ही स्थिति को इस हद तक पहुंचाया है. अब इसमें देरी से किसी भी पक्ष को लाभ नहीं होगा.