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”सानटिना” का जलवा

भारत की सानिया मिर्जा और स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस की ‘सानटिना’ जोड़ी ने लगातार 22 मैचों में जीत दर्ज करते हुए इस वर्ष अपना नौंवा खिताब जीता है. गत रविवार को इस जोड़ी ने सिंगापुर में ड्ब्ल्यूटीए टूर्नामेंट के फाइनल में स्पेन की गैब्रिन मुगुरुजा और कार्ला सुआरेज नावारो की जोड़ी को पराजित किया. सानिया […]

भारत की सानिया मिर्जा और स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस की ‘सानटिना’ जोड़ी ने लगातार 22 मैचों में जीत दर्ज करते हुए इस वर्ष अपना नौंवा खिताब जीता है. गत रविवार को इस जोड़ी ने सिंगापुर में ड्ब्ल्यूटीए टूर्नामेंट के फाइनल में स्पेन की गैब्रिन मुगुरुजा और कार्ला सुआरेज नावारो की जोड़ी को पराजित किया.
सानिया का यह इस वर्ष का 10वां खिताब है और मार्टिना हिंगिस के डब्ल्यूटीए युगल खिताबों की संख्या 50 हो गयी है.पेशेवर टेनिस में यह मुकाम अब तक मात्र 15 खिलाड़ियों ने हासिल किया है. पेशेवर टेनिस के जोरदार प्रतियोगितात्मक वातावरण में बचे रहना ही अपने-आप में उपलब्धि है, पर सानिया मिर्जा ने निरंतर जीतों के साथ उच्च स्थान हासिल कर अपना नाम महान खिलाड़ियों में शुमार करा दिया है. यह भारतीय टेनिस के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है. ध्यान रहे, सानिया को खेल की दुनिया की चुनौतियों के साथ-साथ भारतीय टेनिस एसोसिएशन, मीडिया और कट्टरवादी तत्वों के नकारात्मक रवैया का भी सामना करना पड़ा है.
ऐसे दबावों ने अनेक खिलाड़ियों के पेशेवर जीवन को प्रभावित किया है, पर सानिया ने अपनी प्रतिबद्धता से इन अवरोधों पर उसी अंदाज में जीत दर्ज की है, जैसा कि वे खेल के मैदान में करती रही हैं. सानिया के असंख्य प्रशंसकों में मार्टिना नवरातिलोवा और विजय अमृतराज जैसे महान खिलाड़ी शामिल हैं. सानिया और लियेंडर पेस जैसे खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय टेनिस में जो ऊंचाइयां हासिल की हैं, उन पर गर्व की अनुभूति स्वाभाविक है.
यह भारतीय खेल परिदृश्य के लिए अनुकरणीय भी है. लेकिन, हमारे खेल प्रबंधकों को यह भी गंभीरता से विचार करना होगा कि प्रतिभा की प्रचुरता के बावजूद हमारे अन्य खिलाड़ी वैश्विक उपस्थिति दर्ज कराने में क्यों नाकाम रह जाते हैं? 2003 में पेशेवर टेनिस जगत में प्रवेश करनेवाली सानिया के अलावा किसी अन्य महिला खिलाड़ी की कोई चर्चा नहीं है.
इस साल लगातार चौथी बार राष्ट्रीय महिला चैंपियनशिप जीतनेवाली प्रेरणा भांबरी या इसी हफ्ते सिंगापुर में ही डब्ल्यूटीए में अंडर-16 खिताब जीतनेवाली प्रांजल याड्लापल्ली के पास कोई प्रायोजक नहीं है. ऐसी कम-से-कम 25 महिला खिलाड़ी हैं जो प्रतिभावान हैं, पर उन्हें अपने खर्च के लिए परिवार और पुरस्कार राशि पर निर्भर रहना पड़ता है.
ऐसे में हमारी खेल-नीति और टेनिस एसोसिएशन की गतिविधियों में पर्याप्त सुधार अपेक्षित है, तभी नवोदित प्रतिभाएं सानिया की परंपरा को आगे बरकरार रख सकती हैं. अन्यथा कभी-कभार चमकनेवालों सितारों की तरह सानिया भी मिथकों की श्रेणी में शामिल हो जायेंगी और हम कई वर्ष तक बड़ी जीत के जश्न का इंतजार करते रहेंगे.

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