क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
दशहरा आ गया. श्रीराम की विजय के अलावा हम इसे इस रूप में भी याद कर सकते हैं कि रावण ने सीता का अपहरण किया था. एक तरह से एक ऐसी स्त्री का अपमान किया था, जो घने जंगल में अकेली थी. उसे भिक्षा लेने के बहाने उस लक्ष्मण रेखा से बाहर बुलाया था, जिसे उस स्त्री की रक्षा के लिए खींचा गया था.
इसलिए बाद में रावण को इसकी कीमत न केवल अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, बल्कि उसका कुनबा तक नष्ट हो गया. साथ ही लक्ष्मण रेखा एक कहावत की तरह मशहूर हो गयी. लेकिन, आज हालत यह है कि लक्ष्मण रेखा को एक तरह से औरतों को अपमानित करने के लिए प्रयोग किया जाने लगा कि अगर कोई औरत लक्ष्मण रेखा को पार करेगी, तो उसके साथ तो बुरा बरताव होगा ही.
हमारे समाज में हर घर में लड़कियों के लिए बनायी गयी अपनी लक्ष्मण रेखा है, जिसकी परिभाषा अलग-अलग है. अधिकतर मामलों में अगर लड़की अपनी मर्जी से शादी करना चाहे, तो इसे लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन माना जाता है. इसलिए लड़कियों को तरह-तरह से दंडित किया जाता है. यहां तक कि उन्हें जान से हाथ तक धोना पड़ता है.
लेकिन आज के समय को देखें, तो ये लक्ष्मण रेखाएं कितनी बेमानी हो गयी हैं. लड़कियां बड़ी संख्या में बाहर निकलती हैं. पढ़ती-लिखती हैं. रोजगार के लिए अपने गांवों- शहरों से दूर जाती हैं. सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित करती हैं. फिर भी एक खौफ का साया हमेशा मंडराता रहता है.
पता नहीं कब क्या हो जाये. वे जंगल में नहीं होतीं, फिर भी जगह-जगह उनका सामना रावण जैसे दुष्टों से होता है. क्या इन सड़क छाप रावणों को मारने के लिए हमेशा राम की जरूरत होगी या कि कानून इन दरिंदों को यह सिखा सकेगा कि अगर रावण बनने की कोशिश करोगे, अगर किसी स्त्री के साथ ज्यादती करोगे, तो उसी तरह खत्म हो जाओगे, जैसे रावण हुआ था.
हमारे समाज में औरतों की सुरक्षा की दृष्टि से यह बहुत जरूरी है कि जिन कानूनों को औरतों ने बड़ी मुश्किल और संघर्ष से हासिल किया है, उसका कभी दुरुपयोग न हो. वरना मजबूत कानून की धार भी कुंद हो जाती है.
आज हर रोज ऐसी खबरें सुनाई देती हैं कि नन्हीं बच्चियों तक को बदमाश अपना शिकार बनाने से नहीं छोड़ते. और अिधकतर मामलों में ये शैतान तत्व रावण की तरह, बाहर से नहीं आते. नब्बे प्रतिशत से अधिक मामलों में अपने परिजन और नाते-रिश्तेदार ही लड़कियों के लिए काल बन जाते हैं.
ये कब समझेंगे कि आज की लड़की उतनी असुरक्षित नहीं, जितनी कि एक समय में होती थी. सारी पाबंदियों के मकड़जाल में फंसी रहती थी. परिवार, कर्तव्य और धर्म के नाम पर हर तरह के जुल्म सहती थी. आज लोकतंत्र और कानून उनकी रक्षा के लिए मजबूती से खड़े हैं.वक्त की दरकार और समय की पुकार है कि हम परिवार और परिवार से बाहर उन रावणों को खत्म करें, जो हमें सताते हैं.