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प्रतिकार करना भी सीखें महिलाएं
आज हमारे देश में महिलाओं को जो सम्मान दिया जा रहा है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद देश की बेटियों की स्थिति अच्छी नहीं है. उनका घर से निकलना भी दूभर है. हालांकि, देश के विकास और सीमा पर सुरक्षा प्रदान करने में महिलाओं की भूमिका अधिक है, मगर ग्रामीण […]
आज हमारे देश में महिलाओं को जो सम्मान दिया जा रहा है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद देश की बेटियों की स्थिति अच्छी नहीं है. उनका घर से निकलना भी दूभर है.
हालांकि, देश के विकास और सीमा पर सुरक्षा प्रदान करने में महिलाओं की भूमिका अधिक है, मगर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की अधिकांश महिलाएं आज भी अबला ही बनी हुई हैं. पूरी दुनिया कहती है कि महिलाओं की इज्जत करनी चाहिए. सार्वजनिक स्थानों पर, थानों में, बस, रेल, मंदिर, अस्पताल आदि में भी महिलाओं को प्रश्रय दिया जाता है और लोगों को नसीहत भी दी जाती है कि महिलाओं का सम्मान करो.
यह विडंबना भी है कि जिस देश में नारी को देवी का दर्जा देकर पूजा की जाती है, उसी देश में महिलाओं की इज्जत को तार-तार कर दिया जाता है. उनके साथ झपट्टामारी की जाती है. सरेराह छेड़छाड़ की घटनाओं को भी अंजाम दिया जाता है. इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर इस प्रकार की असामाजिक और अमानवीय घटनाओं के पीछे जिम्मेदार कौन है?
गहराई से इस पर गौर करेंगे, तो पता चलेगा कि हमारे समाज की संस्कृति जाने-अनजाने और कहीं न कहीं महिलाओं के प्रति हिंसा को बढ़ावा दे रही है. फिल्म और टीवी के ग्लैमर से प्रेरित होकर महिलाएं पाश्चयात्य सभ्यता का अंधानुकरण करते हुए खुलेपन की जिंदगी जीने के लिए लालायित होती हैं.
इस खुलेपन का ही नतीजा है कि सरेराह महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की जाती है. आये दिन अखबारों में, टीवी पर यह देख और सुन कर दुख होता है, जब किसी महिला अथवा किशोरियों के साथ अनैतिक कार्य किये जाते हैं.
फिल्म और टीवी से प्रेरित होना अच्छी बात है, लेकिन उससे पहले हमें अपनी जीवनशैली और माहौल का ध्यान रखना होगा. सबसे बड़ी बात यह कि अगर महिलाएं ऐसी घटनाओं का प्रतिकार करें तो इनकी रोकथाम संभव है.
-विजय कु अग्रवाल, रांची
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